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बिहार चुनाव हो गया, बवाल जारी
बिहार चुनाव हो गए, नितीश कुमार भी मुख्यमंत्री बन गए लेकिन राजनैतिक
और एसआईआर का बवाल अभी भी जारी है। बिहार चुनाव की शुरुआत चुनाव आयोग की
विवादास्पद एसआईआर करवाने की घोषणा के साथ ही हो गई थी। भयंकर विवाद के बाद नितीश फिर से मुख्यमंत्री बन गए हैं और मामला विधानसभा
अध्यक्ष को लेकर फंस गया है। टकराव में नितीश कितने दिनों तक मुख्यमंत्री रहते
हैं यह समय बताएगा। फिलहाल चुनाव परिणाम में ज्ञानादेश के अनुसार एनडीए गठबंधन
को मिली 200 से अधिक सीटों को लेकर बवाल मचा हुआ है। बिहार चुनाव में कुल 243
में से अकेले भाजपा को 89, नितीश कुमार की जेडीयू को 85, चिराग पासवान की
एलजेपी को 19, हिंदुस्तान आवाम मोर्चा को 5, राष्ट्रीय लोक मोर्चा को 4,
तेजस्वी यादव की आरजेडी को 25, कांग्रेस को 6, कम्युनिष्ट पार्टी को 3, ओवैसी
की पार्टी एआईएमआईएम को पांच और अन्य को 2 सीटें मिली हैं।
इस ज्ञानादेश से साफ जाहिर है कि यहां पूर्ण बहुमत किसी के पास नहीं है और नए
नए बवाल समय समय पर उठते रहेंगे। बिहार के बाद अब बंगाल चुनाव को लेकर भी मुख्य
चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार लगातार निशाने पर बने हुए हैं। उन पर विपक्षी
पार्टियों और कई राजनैतिक पंडितों ने चुनाव में धांधली करने के आरोप लगाए हैं।
जारी...
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विनय को चुनौती
मिली
सिरमौर के विनय कुमार हिमाचल कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं। उन्हीं के
नेतृत्व में अब कांग्रेस पार्टी प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में
उतरेगी। उनके समक्ष चुनौती यह है कि लंबे समय से प्रदेश में कांग्रेस का संगठन
बन ही नहीं पाया है। वह पहले संगठन बनाएंगे फिर पार्टी को विधानसभा चुनाव में
उतारेंगे।
सिरमौर के रेणुका जी विधानसभा क्षेत्र के विधायक विनय कुमार ने हिमाचल विधानसभा
के स्पीकर कुलदीप पठानिया को अपने पद से त्यागपत्र सौंपा दिया था। उनका इस्तीफा
विधानसभा अध्यक्ष ने मंजूर भी कर लिया। मुख्यमंत्री सुक्खू पहले ही दलित वर्ग
से पार्टी अध्यक्ष बनाने की वकालत कर चुके थे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष
मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी विनय के नाम पर सहमती जता दी थी।
माना जा रहा था कि कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष शिमला संसदीय क्षेत्र से हो सकता
है। इसका कारण यह था कि मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री जब निचले हिमाचल से
बनाया गया है तो क्षेत्रीय संतुलन बनाए रखने के लिए ऊपरी हिमाचल से किसी को
प्रदेशाध्यक्ष बनाया जा सकता है। तभी ठियोग के विधायक कुलदीप राठौर और शिक्षा
मंत्री रोहित ठाकुर का नाम लिया जा रहा था। जब मुख्यमंत्री ने किसी दलित को
प्रदेशाध्यक्ष बनाने की बात छेड़ी तो बात विनय कुमार पर आकर रुक गई।
.जारी..
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सुक्खू सरकार ने
अनावश्यक पंगा ले लिया
हिमाचल प्रदेश में पंचायती राज चुनावों को लेकर प्रदेश की सुक्खू सरकार
ने अनावश्यक पंगा ले लिया है। जबकि राज्य चुनाव आयोग अपनी संवैधानिक बाद्यता के
चलते चुनाव प्रक्रिया का जारी रखे हुए है। कहा यह भी जा रहा है कि संवैधानिक
बाद्यता के सामने डिजास्टर अधिनियम की बाद्यता मायने नहीं रखती है। फिलहाल
मामला प्रदेश हाई कोर्ट में भी चल रहा है और अदालत ही इस पर अंतिम फैसला लेगी।
राज्य निर्वाचन आयोग ने प्रदेश के तमाम उपायुक्तों को बैलेट पेपर की खेप उठाकर
अपने पास रख लेने के लिए आदेश दिए थे लेकिन पहले तो उपायुक्तों ने सरकार के
दबाव में इस आदेश की अवहेलना कर दी। फिर बाद में उपायुक्तों को चुनाव आयोग की
बात माननी पड़ी। यह मामला इसलिए भी गरमाया हुआ है कि सरकार और निर्वाचन आयोग के
बीच गरमागरम पत्राचार भी हुआ है। जिसमें निर्वाचन आयोग की ओर से सरकार को भेजे
गए पत्र का जवाब आयोग को भेज दिया गया था।
सरकार का कहना है कि अभी डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के तहत जारी ऑर्डर को वापस
लेना संभव नहीं है। मुख्य सचिव ने कहा है कि राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से भेजे
गए पत्र पर सरकार ने विचार किया है। सभी जिलों से फीडबैक लिया है।
जारी...
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संवैधानिक मामलों
में अजीब तरह आचरण करती है सरकार
संवैधानिक मामलों में जयराम ही नहीं सुक्खू सरकार भी अजीब तरह का आचरण
करती है। अब हिमाचल ने नर्सरी और केजी कक्षाओं के लिए प्रारंभिक बाल्यावस्था
देखभाल एवं शिक्षा (ईसीसीई) प्रशिक्षकों की भर्ती का भविष्य राज्य मंत्रिमंडल
तय करेगा। हलांकि यह तयबाजी पिछले करीब दो दशकों से प्रदेश में चल रही है। कहते
हैं कि कम समझ रखने वालों की तरह कार्य कर रहे शिक्षा विभाग ने इस पर रिपोर्ट
तैयार कर सरकार को भेजने की तैयारी कर ली है। अब हैरतअंगेज सुझाव यह दिया गया है कि यदि केंद्र सरकार से दो वर्षीय एनटीटी
(नर्सरी टीचर ट्रेनिंग) डिप्लोमा की अनिवार्यता में तत्काल छूट नहीं मिलती तो
प्रदेश अपने स्तर पर छह माह का ब्रिज कोर्स शुरू कर सकता है। अब इस बात पर हंसा
न जाए तो क्या किया जाए। हिमाचल सरकार इस मामले में उस बात की छूट मांगने जा
रही है जो भारत के संविधान के अनुच्छेद 21ए शिक्षा के अधिकार कानून को संविधान
में शामिल कर किया गया था। भारत के संविधान में यह 86वां संशोधन 2002 में किया
गया था। जिस पर छूट देना केन्द्र सरकार के बस में नहीं है।
शिक्षा विभाग के तथाकथित बुद्धिजीव कह रहे हैं कि उनके सुझाव से पात्रता
प्राप्त करने वाले उम्मीदवारों को अवसर दिया जा सकेगा। जारी...
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पहली बार किसी शिक्षा मंत्री
ने बच्चों के भविष्य पर ध्यान दिया
हिमाचल प्रदेश में पहली बार किसी शिक्षा मंत्री ने बच्चों के भविष्य को
देखते हुए अपनी शिक्षा प्रणाली और सरकार की मंशा का ऐलान किया है। इसमें सबसे
महत्वपूर्ण बात यह कही गई है कि हिमाचल प्रदेश में 25 प्रतिशत से कम परीक्षा
परिणाम देने वाले स्कूलों में अब विद्यार्थियों की एक्सट्रा क्लास लगेगी।
वार्षिक परीक्षाओं से पहले विद्यार्थियों को तैयार करने के लिए शिक्षकों से भी
पूरी मेहनत करवाई जाएगी। इसके लिए शिक्षकों को सौंपे गए गैर शैक्षणिक कार्य भी कम किए जाएंगे। इन
कार्यों को सरल करने की संभावनाओं को तलाशने के लिए उप निदेशकों से सुझाव देने
को कहा गया है। वह सभी से सुझाव लेकर इस योजना में आने वाली परेशानियों से
निपटने के लिए सरकार को सलाह भी देंगे। राज्य सचिवालय में विभागीय की एक
समीक्षा बैठक में शिक्षा मंत्री रोहित ठाकुर ने कहा कि गैर शिक्षण कार्यों का
दबाव कम करने के बाद शिक्षकों की जवाबदेही भी तय की जाएगी ताकि बच्चों का
भविष्य उज्जवल बनाने में कोई कमी न रह जाए और सरकार उसके लिए प्रयत्नशील रहेगी।
शिक्षा मंत्री ने आगे कहा कि बीएड/डीएलएड विद्यार्थियों को उनके पैतृक स्थान
में शैक्षणिक पद्धतियों का अभ्यास करने के लिए भेजा जाएगा।
जारी...
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बघाट बैंक का भांडाफोड़ तो एक दिन होना था

बघाट बैंक में जो घोटाला हुआ वह ग्रास साप्ताहिक के लिए कोई नई बात नहीं
है। अप्रैल 1997 के अंक में ही ‘ग्रास’ ने ‘बघाट बैंक में भारी घोटाले की
संभावना’ हैडलाइन से खबर छापकर से लोगों को बता दिया था। इस खबर के चलते बैंक
के प्रबंधन ने ग्रास के खिलाफ 05 लाख रुपए का मानहानि का दावा कर दिया था।
जिला न्यायालय में कानूनी जंग चली और ‘ग्रास’ की दलीलें मानते हुए कोर्ट ने
मानहानि को तो अस्वीकार कर दिया लेकिन ‘ग्रास’ को दस हजार रुपए बैंक को दावा
खर्च देने का आदेश पारित कर दिया। ‘ग्रास’ के संपादक संजय हिंदवान ने बघाट बैंक
को दस हजार रुपए देने से इंकार कर दिया। हलांकि तब बैंक प्रबंधन ने अपने
चाटूकारों के सहयोग से ‘ग्रास’ के खिलाफ खूब खबरें अखबारों में छपवाई। क्योंकि
सवाल दस हजार का नहीं था ‘ग्रास’ की प्रतिष्ठा का था।
इसलिए संजय हिंदवान लोअर कोर्ट के इस मामले को लेकर हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट
पहुंच गए। वहां पर भी ‘ग्रास’ ने अपनी दलीलें रखीं। आखिरकार हाई कोर्ट ने 29
फरवरी, 2008 को ‘ग्रास’ के पक्ष में फैसला देते हुए और उसकी पत्रकारिता को सही
आंकते हुए लोअर कोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया।. जारी...
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सोलन ने हिमाचल को राष्ट्रीय
पटल पर टॉप में पहुंचाया
सोलन के लोगों ने हिमाचल प्रदेश को सबसे अमीर
राज्य की श्रेणी में ला खड़ा किया है। प्रति न्यक्ति आय में सोलन जिला हिमाचल
में ही टॉप स्थान पर नहीं है बल्कि सोलन जिला में प्रति व्यक्ति आय के अधिक होने
के कारण समूचा हिमाचल राष्ट्रीय औसत आय में भी बहुत आगे निकल गया है। इसका सबसे
बड़ा कारण है कि समूचे देश का हिमाचल के प्रति लगाव। लोगों की मंशा सिर्फ हिमाचल
में धूमने के लिए आने तक ही सीमित नहीं है, बल्कि लोग यहां पर बसने के लिए आतूर
रहते हैं। प्रति व्यक्ति आय में हिमाचल की राजधानी शिमला हिमाचल के सबसे छोटे
जिला लाहुल स्पिति और सबसे पिछड़े सिरमौर से भी पीछे है।
मजेदार बात यह है कि सोलन जिला को टॉप पर लाने में यहां के राजनेताओं का कोई
विशेष योगदान नहीं है। बल्कि कड़वा सत्य यह है कि सोलन जिला से अर्जित आय का नाम
मात्र हिस्सा भी सोलन जिला के विकास पर खर्च नहीं किया जाता है। यूनाइटेड नेशनज
डिवेलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की ह्यूमन डिवेलपमेंट रिपोर्ट ने आर्थिक मोर्चे
पर हिमाचल के रोल और अचीवमेंट पर भी फोकस किया है। छोटा पहाड़ी राज्य हिमाचल लंबे
अरसे से प्रति व्यक्ति आय के मोर्चे पर देश भर में उल्लेखनीय स्थान पर है।
हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत से भी अधिक है। वर्ष 2024-25 में
हिमाचल की प्रति व्यक्ति आय 2,57,512 रुपए दर्ज की गई।
जारी...
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लावारिस पशुओं और
कुत्तों पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा फैसला
शहर और कस्बों में झुंडों में घूमने वाले लाचारिस
पशुओं खासकर कुत्तों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक कड़ा फैसला सुना दिया है।
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में देश भर की स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि हर
शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, सार्वजनिक खेल परिसर, बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन
जैसे सार्वजनिक स्थलों से लावारिस कुत्तों को हटाने और उनके प्रवेश को रोकने के
लिए उचित बाड़ लगानी होगी। शीर्ष कोर्ट ने कड़ाई से कहा है कि इस संबंध में किसी
भी चूक को गंभीरता से लिया जाएगा और नगरपालिका व प्रशासनिक अधिकारियों को
जिम्मेदार ठहराया जाएगा। हलांकि सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश को कुछ पशु प्रेमियों
ने बहुत कड़ा निर्णय बताते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने बेजुबान पशुओं की पीड़ा
को दरकिनार कर दिया है।
शीर्ष अदालत ने सड़कों, राजमार्गों व एक्सप्रेस-वे से लावारिस मवेशियों को भी
तत्काल हटाने के निर्देश दिए। जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संदीप मेहता और जस्टिस
एनवी अंजारिया की पीठ ने कहा कि शैक्षणिक संस्थान, अस्पताल, खेल परिसर, बस
स्टैंड-डिपो या रेलवे स्टेशन के परिसर में पाए जाने वाले हर लावारिस कुत्ते को
तुरंत हटाना और उचित नसबंदी व टीकाकरण के न बाद निर्दिष्ट आश्रय स्थल में
स्थानांतरित करना संबंधित अधिकार क्षेत्र वाले नगर निकाय प्राधिकरण की
जिम्मेदारी होगी।
जारी...
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संपादकीय संविधान रक्षा संसद का धर्म
भारत
के संविधान की सुरक्षा करना संसद का धर्म है। इसीलिए लोकसभा और राज्यसभा का
चुनाव देश की जनता करती है ताकि देश की जनता भारत के संविधान की सुरक्षा अपने
पसंदीदा प्रत्याशियों के हाथ में वोट देकर सौंप सके। यदि संसद कोई संवैधानिक
गलती कर जाती है तो संविधान का संरक्षक बनकर सुप्रीम कोर्ट संसद के सामने आ
जाता है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट संसद द्वारा पारित असंवैधानिक अधिनियमों को भी
रद्द करता रहा है। यूं तो राष्ट्रपति अपनी शपथ में देशवासियों को संविधान
सुरक्षा की गारंटी देता है पर इस पद को दंतहीन कहा जाता है।
राष्ट्रपति की शक्तियों का इस्तेमाल चुनी हुई सरकार की कबिना करती है। इसी कारण
यह जिम्मेदारी भी भारतीय संसद पर ही आ जाती है। तभी कहा जाता है कि संसद भारत
के संविधान की सुरक्षा संसद का धर्म है। यह तो किताबी बातें हैं लेकिन वास्तव
में देश में क्या हो रहा है। देश की सरकार पर आरोप है कि वह संविधान को
सुरक्षित रखने वाले संस्थानों पर कब्जा करके बैठ गई है। लोकतंत्र की शुरुआत आम
चुनावों से होती है और चुनाव के बाद ही भारतीय गणराज्य में लोकसभा, राज्यसभा,
विधानसभाओं का गठन होता है। राज्य विधानसभा के सदस्य राज्यसभा के लिए सदस्यों
को चुनते हैं।
देश की सर्वोच्य संस्था लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल देश की सरकार का गठन करता
है। सरकार ही आगे चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट के जज और कई अन्य पदों के लिए
नियुक्तियों करती है। आरोप यह लगाए जा रहे हैं कि सरकार अपनी मर्जी का चुनाव
आयुक्त चुनती है और सुप्रीम कोर्ट के जजों को नियुक्त करती है। इन पदों पर
बैठने वालों की यह जिम्मेदारी रहती है कि वह भारत के संविधान के अनुसार कार्य
करेंगे। लोकतंत्र की पहली कड़ी चुनाव आयोग पर ही गंभीर आरोप लग रहे हैं कि आजकल
वह एसआईआर के नाम पर लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटकर सरकार के फायदे का काम
कर रही है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि मनमर्जी से उन वोटों को चुन चुनकर काटा जा
रहा है जो विपक्षी पार्टियों का वोट बैंक है।
....जारी |
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सुप्रीम कोर्ट ने नया संकट खड़ा कर
दिया
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के
बाद राज्य सरकारों को लेकर नया संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। अब विधानसभा
द्वारा पास बिलों को राज्यपाल जब तक चाहें तब तक रोककर रख सकते हैं। हलांकि
विधानसभा का कार्यकाल मात्र पांच वर्ष का है और सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले में
कहा गया है कि बिलों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती। राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिल मंजूरी की डेडलाइन तय करने वाली याचिकाओं पर
फैसला सुनाते कहा कि हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास विधानसभाओं से पास
बिलों (विधेयकों) पर रोक लगाने की पूरी पावर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि
गवर्नर्स के पास तीन रास्ते हैं। या तो बिल को मंजूरी दें या बिलों को दोबारा
विचार के लिए भेजें या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजें। हालांकि इसके साथ ही
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा
सकती। हास्यस्पद बात यह सामने आई है कि सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि अगर देरी होगी, तो
हम दखल दे सकते हैं।
जारी...
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क्रमीलेयर को आरक्षण नहीं मिलना चाहिए
अनुसूचित
जाति आरक्षण पर अपनी सेवानिवृति से एक सप्ताह पहले भारत के प्रधान न्यायाधीश
बीआर गवई ने दोहराया कि वह अनुसूचित जातियों के आरक्षण में क्रीमी लेयर को
शामिल नहीं करने के पक्ष में हैं। वह स्वयं अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं और
स्वयं को क्रीमी लेयर की श्रेणी में रखते हैं। चीफ जस्टिस ने 75 वर्षों में
भारत और जीवंत भारतीय संविधान नामक एक कार्यक्रम में कहा कि आरक्षण के मामले
में एक आईएएस अधिकारी के बच्चों की तुलना एक गरीब खेतिहर मजदूर के बच्चों से
नहीं की जा सकती। उनका कहना की अर्थ यह निकाला जा रहा है कि जो लोग आरक्षण का लाभ लेकर संपन्न हो
चुके हैं और अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को उठा सकते हैं उन्हें आरक्षण से
दूर हो जाना चाहिए। न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि मैंने आगे बढ़कर ऐसा विचार रखा कि
क्रीमी लेयर की अवधारणा जैसा कि इंद्रा साहनी (बनाम भारत संघ एवं अन्य) के
फैसले में पाया गया है वैसे लागू होनी चाहिए। जो अन्य पिछड़ा वर्ग पर लागू होता
है वही अनुसूचित जातियों पर भी लागू होना चाहिए। वह कहते हैं कि मेरे फैसले की
व्यापक रूप से आलोचना हुई है, फिर में मेरा अब भी यही विचार है।
जारी...
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हिमाचल के आईएएस अफसरों ने केन्द्र के कोर्स
से मुंह मोड़ा
हिमाचल प्रदेश के आईएएस अधिकरियों ने केन्द्र सरकार के एक प्रशिक्षण
कार्यक्रम से अपना मुंह पीछे मोड़ लिया है। इस प्रशिक्षण के लिए एक्कादुक्का
अधिकारियों ने ही हामी भरी है। केन्द्र में मोदी सरकार विराजमान है और कहते हैं
वह जो करना चाहती है वह किसी भी कीमत पर कर देती है। अब केन्द्र सरकार के
कार्मिक मंत्रालय ने हिमाचल के आईएएस अधिकारियों को केन्द्र सरकार द्वारा
निर्धारित प्रशिक्षण कार्यक्रम में शामिल होने की हिदायत जारी की है। अमूमन माना जाता है कि आईएएस करने के बाद आईएएस अफसर देश को चलाने वाली
ब्यूरोक्रेसी की क्रीम होते हैं और उन्हें किसी प्रकार का ज्ञान व प्रशिक्षण
देना उनकी तौहीन करने के समान है। हलांकि इस बात में कितना दम है यह आज देश के
हालात स्पष्ट रूप से बता रहे हैं कि आईएएस अधिकारी देश को भारत के संविधान के
अनुसार चलाने में पूरी तरह से फेल हो चुके हैं और उन्हें बीच बीच में कड़े
प्रशिक्षण दिए जाने की आवश्यकता है। अब मौजूदा केन्द्र सरकार उन्हें कैसा
प्रशिक्षण देना चाहती है यह तो वही जानती होगी। फिलहाल केंद्र सरकार के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण कार्यक्रम के प्रति हिमाचल
प्रदेश के आईएएस अधिकारियों की बेरुखी खुलकर सामने आ गई है।
जारी...
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नकली व घटिया दवाएं बनाने से बाज नहीं
आ रहे हैं दवा निर्माता
एक ओर जहां बीबीएन के 300 फार्मा उद्योगों के बंद होने की खबरें
चल रही हैं वहां कई फार्मा उद्योग घटिया और नकली दवाएं बनाने से बाज नहीं आ रहे
हैं। प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग के कान तब खड़े होते हैं जब बाहरी राज्यों में
जांच के बाद बीबीएन में बनी नकली दवाएं पकड़ी जाती हैं। अब एक ताजा मामला प्रकाश में आया है कि औद्योगिक क्षेत्र बद्दी के तहत काठा
स्थित वाईएल फार्मा में नकली और अवैध दवाओं के निर्माण हो रहा है। दवा नियंत्रण
प्रशासन ने कार्रवाई करते हुए फार्मा कंपनी के पार्टनर को गिरफ्तार कर लिया।
अदालत ने आरोपी को चार दिन के पुलिस रिमांड पर भेज दिया था। आरोप है कि इस
यूनिट में न सिर्फ घटिया और नकली दवाइयां बनाई जा रही थीं बल्कि कई उत्पाद एक
फर्जी कंपनी के नाम पर पैक कर बाजार में भेजे जा रहे थे। इसका खुलासा तब हुआ जब राजस्थान ड्रग्स कंट्रोलर ने वाईएल फार्मा द्वारा
निर्मित लेवोसेटिरीजीन (विन्सेंट एल.) टैबलेट को नॉट ऑफ स्टैंडर्ड क्वालिटी
घोषित कर इसकी बद्दी में फार्मा कंपनी को पाया। इस नकली दवाओं के गोरख घंघे का
खुलासा भी राजस्थान से हुआ है। जबकि हिमाचल का स्वास्थ्य विभाग और ड्रग
कंट्रोलर का कार्यालय कानों में रुई डालकर सो रहा है।
जारी...
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कुछ ही दिनों में सोने की
कीमतें गिरी
लगातार बढ़त बना रहे
सोने और चांदी की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज की जा रही है। इससे पहले दीपावली
पर सोने की कीमत ने जो उछाल मारा उससे आम लोगों के पसीने छूट गए। लेकिन दीपावली
के आठ दिन बाद सोने के दाम में जो गिरावट आई वह भी हैरान कर देने वाली थी। पिछले दिनों दिल्ली के सराफा बाजार में सोना 1,500 रुपये सस्ता होकर 1,29,400
रुपये प्रति 10 ग्राम के भाव बंद हुआ। चांदी की कीमतों में 4,200 रुपये की भारी
गिरावट आई और यह 1,64,800 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव पर आ गई। पिछले
कारोबारी सत्र में सोना 3,000 रुपये महंगा होकर 1,30,900 रुपये प्रति 10 ग्राम
के भाव बंद हुआ था। चांदी भी 7,770 रुपये की बड़ी तेजी के साथ 1,69,000 रुपये
प्रति किलोग्राम के भाव बंद हुई थी। दीपावली के बाद कुछ दिनों में ही सोने की
कीमतों में 27,334 रुपए की गिरावट देखी गई थी। कुछ व्यपारियों का कहना है कि
अभी इसमें और गिरावट आने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। जबकि कुछ
का मानना यह भी है कि यह सोना खरीदने का उपयुक्त समय है क्योंकि सोने के दाम जब
एक बार बढ़ जाते हैं तो वह नीचे नहीं गिरते हैं। इसलिए लोगों को सोना खरीदने का
यह उपयुक्त समय है, सोना अभी और बढ़ेगा। दीपावली से एक दिन पहले ही 19 अक्टूबर को सोने की कीमत 1,29,584 रुपए के अपने
अब तक के सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गई थी। वहीं चांदी 1,69,230 रुपए प्रति किलो
से गिरकर 1,41,896 रुपए
आ गई। जारी...
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  नहीं रहे धर्मेंद्र
हिंदी
सिनेमा के दिग्गज अभिनेता और ‘ही मैन’ के नाम से मशहूर धर्मेंद्र का 89 की उम्र
में निधन हो गया। मुंबई के विले पार्ले श्मशान घाट में धर्मेंद्र का अंतिम
संस्कार किया गया। उनके बड़े बेटे और अभिनेता सनी दियोल ने उन्हें मुखाग्नि दी।
उनकी पत्नी और अभिनेत्री हेमा मालिनी, पुत्री इशा दियोल और
परिवार
के अन्य सदस्य उन्हें अंतिम विदाई देने के लिए पहुंचे थे। उनके अंतिम संस्कार में सलमान खान, संजय दत्त, अमिताभ बच्चन, आमिर खान समेत
कई अन्य लोग भी पहुंचे। धर्मेंद्र के निधन पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू,
पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह, राहुल गांधी समेत कई दिग्गजों ने शोक जताया
है। देश के कई दिग्गजों ने अभिनेता धर्मेंद्र के निधन को एक युग के अंत का
बताया है। धर्मेंद्र ने अपने 60 साल के फिल्मी करियर में करीब 300 फिल्में
की थीं। उन्हें कई अवार्ड मिले और उन्हें पद्म भूषण अवार्ड से भी सम्मानित
किया गया था।
जारी...
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आनलाइन आवेदनों पर बेतुके ऑबजेक्शन लगा रहा है राजस्व विभाग
सरकारी स्कूलों से प्रायवेट स्कूलों में जाने का दौर खत्म
नहीं हुआ
कांग्रेसी नेता तेजी में आए
जारी... |
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गांव में बिजली का बल्व जला तो झूम उठे लोग
सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हिमाचल को झटका
खाद्य आपूर्ति विभाग की अपनी ही जांच में 43 सैंपल फेल
जारी... |
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