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संपाकीय

स्‍पीकर के खिलाफ आक्रोश

     स्पीकर लोकसभा का हो या राज्यसभा का इनके खिलाफ सदन में आक्रोश पैदा होना लोकतंत्र के लिए काफी घातक है। इससे भी घातक यह है कि जब उन पर पक्षपात के आरोप लग रहे हों। भारतवर्ष में कुछ स्थिति इसी प्रकार की है। पिछले दिनों देखने में आया कि लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला और राज्यसभा के स्पीकर ओ.पी. धनकड़ के खिलाफ विपक्षी सांसदों में काफी रोष पाया गया। हालात आविश्वास प्रस्ताव लाने तक पहुंच गए थे। अभी भी यह संभावनाएं खत्म नहीं हुई हैं कि यह अविश्वास प्रस्ताव कब सदन में ला दिया जाए।
     प्रजातंत्र में दोनों सदनों के सभापति को गैर राजनैतिक दल से प्रभावित सदस्य माना जाता है। उससे अपेक्षा की जाती है कि वह स्पीकर बनाने के बाद पूर्ण निष्पक्षता से सदन का संचालन करेंगे। भारतीय संसद अब स्पीकर के प्रति विश्वास खत्म होने की स्थिति तक आ पहुंचा है। अब राज्यसभा के स्पीकर का जहां तक प्रश्न है उन्हें इंपीचमेंट करके ही सदन से हटाया जा सकता है। यह काफी मुश्किल काम भी लगता है। लेकिन लोकसभा के स्पीकर को साधारण बहुमत से ही हटाया जा सकता है। कहा जा सकता है कि मोदी सरकार के जाने का समय जब आएगा तो सबसे पहले लोकसभा के स्पीकर ओम बिरला की छुट्टी होगी। पहले और अब भी उन पर आरोप लग रहे हैं कि वह सदन में पक्षपात पूर्ण रवैया अपनाए हुए हैं। ऐसे अनगिनत उदाहरण देश के जनता के समक्ष भी विपक्षी पार्टियां रख चुकी हैं।
     यदि ओम बिरला के खिलाफ कुछ सांसदों का समूह अविश्वास प्रस्ताव लाता है तो उन्हें तुरंत कुर्सी से उतरकर पहले अविश्वास प्रस्ताव जीतना होगा। अल्पमत सरकार में यह संभावना भी है कि ओम बिरला सदन में अविश्वास प्रस्ताव हार जाएं। उन्होंने करीब 150 सांसदों को सदन से बाहर करके पिछली मोदी सरकार को कुछ बिलों को बिना बहस के पास करवाने में मदद की थी। अब भी वह सांसदों को अनावश्यक रूप से रोकते टोकते रहते हैं। कहा जा सकता है कि उनके खिलाफ कई सांसदों, खासकर इंडिया गठबंधन के सांसदों में भारी रोष है। इसलिए संख्या बल बढ़ने पर सबसे पहले उनकी छुट्टी होगी। इस बात के संकेत भी इंडिया गठबंधन की ओर से दिए जा चुके हैं।
     जहां तक राज्यसभा का प्रश्न है वहां भी स्पीकर ओ.पी. धनकड़ को भी सांसदों से खरीखोटी सुननी पड़ रही है। उन पर तो उनके राजनैतिक जीवन पर सीधे आक्षेप भी लगने शुरू हो गए हैं। यहां तक कहा जा सकता है कि उनसे भी विपक्षी सांसद खुश नहीं हैं। भारत के संविधान में सभी को उनके पद के हिसाब से जिम्मेदारियां दी गई हैं। स्पीकर का काम सदन में यह होता है कि वह सदन में सरकार को संसद के प्रति जवाबदेह बनाए रखने की स्थिति में रखे। यहां कहा जा रहा है कि स्पीकर सरकार को जवाबदेह बनाने की बजाए सरकार को बचाने के कार्य में लगे हुए हैं। यह भी भारत के संविधान के पूरी तरह खिलाफ है। जैसा माहौल सदन के भीतर है उसे देखकर कहा जा सकता है कि मोदी सरकार तो जाएगी पर स्पीकर उससे पहले चले जाएंगे।

 
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