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संपादकीय
संविधान रक्षा संसद का धर्म
भारत
के संविधान की सुरक्षा करना संसद का धर्म है। इसीलिए लोकसभा और राज्यसभा का
चुनाव देश की जनता करती है ताकि देश की जनता भारत के संविधान की सुरक्षा अपने
पसंदीदा प्रत्याशियों के हाथ में वोट देकर सौंप सके। यदि संसद कोई संवैधानिक
गलती कर जाती है तो संविधान का संरक्षक बनकर सुप्रीम कोर्ट संसद के सामने आ
जाता है। इसीलिए सुप्रीम कोर्ट संसद द्वारा पारित असंवैधानिक अधिनियमों को भी
रद्द करता रहा है। यूं तो राष्ट्रपति अपनी शपथ में देशवासियों को संविधान
सुरक्षा की गारंटी देता है पर इस पद को दंतहीन कहा जाता है।
राष्ट्रपति की शक्तियों का इस्तेमाल चुनी हुई सरकार की कबिना करती है। इसी कारण
यह जिम्मेदारी भी भारतीय संसद पर ही आ जाती है। तभी कहा जाता है कि संसद भारत
के संविधान की सुरक्षा संसद का धर्म है। यह तो किताबी बातें हैं लेकिन वास्तव
में देश में क्या हो रहा है। देश की सरकार पर आरोप है कि वह संविधान को
सुरक्षित रखने वाले संस्थानों पर कब्जा करके बैठ गई है। लोकतंत्र की शुरुआत आम
चुनावों से होती है और चुनाव के बाद ही भारतीय गणराज्य में लोकसभा, राज्यसभा,
विधानसभाओं का गठन होता है। राज्य विधानसभा के सदस्य राज्यसभा के लिए सदस्यों
को चुनते हैं।
देश की सर्वोच्य संस्था लोकसभा में बहुमत प्राप्त दल देश की सरकार का गठन करता
है। सरकार ही आगे चुनाव आयोग, सुप्रीम कोर्ट के जज और कई अन्य पदों के लिए
नियुक्तियों करती है। आरोप यह लगाए जा रहे हैं कि सरकार अपनी मर्जी का चुनाव
आयुक्त चुनती है और सुप्रीम कोर्ट के जजों को नियुक्त करती है। इन पदों पर
बैठने वालों की यह जिम्मेदारी रहती है कि वह भारत के संविधान के अनुसार कार्य
करेंगे। लोकतंत्र की पहली कड़ी चुनाव आयोग पर ही गंभीर आरोप लग रहे हैं कि आजकल
वह एसआईआर के नाम पर लोगों के नाम वोटर लिस्ट से काटकर सरकार के फायदे का काम
कर रही है। आरोप लगाए जा रहे हैं कि मनमर्जी से उन वोटों को चुन चुनकर काटा जा
रहा है जो विपक्षी पार्टियों का वोट बैंक है।
यदि निर्वाचन आयोग सच में ऐसा कर रहा है तो वह लोकतंत्र की बुनियाद को शुरु में
ही खोखला कर रहा है। क्योंकि वास्तविक जनमत से जो सरकार नहीं बन रही है वह
लोकतंत्र को शर्मसार करने वाली सबसे बड़ी बात है। विपक्ष का आरोप है कि चुनाव
आयोग ने बिहार सहित कई राज्यों में इसी प्रकार से जबरन सरकारें बनवा दी हैं।
विपक्ष ने जो सबूत चुनाव आयोग के समक्ष रखें हैं उस पर चुनाव आयोग किसी भी
प्रकार से संविधान के दायरे में रहते हुए जवाब नहीं दे रहा है। ऐसे में
शिकायतकर्ताओं के पास संविधान के संरक्षक सुप्रीम कोर्ट में जाने के अतिरिक्त
और कोई चारा नहीं बचता है। सरकार जब सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्ति करती
है तो सुप्रीम कोर्ट भी कहीं न कहीं सरकार के पक्ष में नजर आता है। सुप्रीम
कोर्ट के पास सबसे हथियार यह है कि वह फैसला कब देता है इसकी बाद्यता नहीं है
और इसी का लाभ सरकार उठा रही है और सुप्रीम कोर्ट भी अपनी उपयोगिता खोता जा रहा
है। |