भंडारे वालों को विशेष हिदायतें, सफाई
व्यवस्था बनाए रखें
संविधान निर्माताओं ने यह बात पहले से ही लिख दी थी
विशेष संवाददाता
सोलन : भंडारा आयोजित करने वालों से कहा गया है कि सफाई व्यवस्था को बनाए रखने
के लिए वह भी अपने वालंटियर्स को भी तैनात करें। वरना उनसे अब सफाई शूल्क भी
वसूल किया जाएगा। भंडारे लगाने वाले लोग खाना खिलाने के साथ साथ सफाई व्यवस्था
को बनाए रखने को प्राथमिकता के आधार पर लें। यहां रहने वाले लोगों के लिए मेले
के बाद पर्यावरण को बचाए रखने की बड़ी जिम्मेदारी आ जाती है। हलांकि मेला आयोजन
समिति ने पर्यावरण को बचाए रखने के लिए विशेष हिदायतें जारी की हैं।
सोलन में सफाई व्यवस्था की जिम्मेदारी नगर निगम की है पर हर वर्ष उसके लिए यह
एक बड़ी चुनौती के रूप में सामने आती है। जिला प्रशासन और सरकार को इसके लिए
विशेष व्यवस्था करनी पड़ती है। शूलिनी मेले के दौरान जो लोग नगर में आते हैं वह
यहां के पार्यवारण के प्रति चिंतित रहते हैं। कहा जाता है कि पर्यावरण को अच्छा
बनाए रखने के लिए भी लोग मेले के दौरान एक काम जरूर करें, अनावश्यक रूप से
गंदगी न फैलाएं। नगर निगम को आदेश दिए जाते हैं कि भंडारों से निकलने वाले कूड़े
के ढेर को वह अधिक देर तक जमा न होने दें। साथ ही लोग भी बचे हुए खाने और
पत्तलों को एक ही स्थान पर जमा करें। पीने के पानी और हाथ धोने के पानी को सोच
समझ कर उपयोग करें। इस बात का खास ख्याल रखा जाए कि मेले के दौरान निकलने वाली
गंदगी के कारण नगर की नालियां ब्लॉक न हों और पका हुआ अनाज नालियों में जमा
होकर न सड़े।
साथ ही ऐसे स्थानों को चिन्हित करके उन्हें साफ किया जाना चाहिए जहां किसी भी
प्रकार की गंदगी जमा हो रही हो और उससे दुर्गंध आ रही हो। यदि इस प्रकार से कुछ
आवश्यक बातों को ध्यान में रखा जाए तो शूलिनी मेला के कारण पर्यावरण को होने
वाले नुक्सान से बचा जा सकता है। अब जब पूरा विश्व पर्यावरण को लेकर चिंतित है
ऐसे में यदि शूलिनी मेले के कारण फैलने वाली गंदगी को सही तरीके से साफ करना एक
नेक कार्य कहा जाएगा। शायद यह कोई भी नहीं चाहेगा कि मां शूलिनी मेले का नाम इस
बात से बदनाम हो कि इस मेले से निकलने वाली गंदगी हमारे आसपास के पार्यवरण को
बड़ा नुक्सान पहुंचाती है।
हमें अपनी धरती को पर्यावरण प्रदूषण से बचाना है। यह सिर्फ नेक सलाह नहीं है यह
हमारी संवैधानिक जिम्मेदारी भी है। यह बात संविधान निर्माताओं ने पहले ही हमारे
संविधान में शामिल कर दी थी, भले ही इस पर कार्य अब हो रहा है। कुछ लोग इस बात
को भी मां शूलिनी का आशीर्वाद मानते हैं कि मां शूलिनी का मेला कई बार झमाझम
मौनसून की बरसात के बीच संपन्न हो जाता है। इस वजह से नगर की सारी गंदगी बहकर
नगर के बाहर चली जाती है। मेले के बाद ऐसा लगता है कि मां की अपार कृपा से
कुदरत ने पूरे नगर को मेले के बाद धोकर साफ सुथरा कर दिया हो। लेकिन ऐसा सोचने
वालों को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि जिस स्थान पर नगर की गंदगी नालों से
होती हुई कहीं और जमा हो जाती होगी वहां भी मेले की गंदगी पर्यावरण के लिए
हानिकारक हो सकती है और इसका नुकसान कहीं और भी हो सकता है। यदि पहले से ही
मेले के दौरान जमा होने वाली गंदगी को सही तरीके से ठिकाने लगा दिया जाए तो
कहीं का भी पर्यावरण इस मेले की वजह से खराब नहीं होगा और मेले की खुशी और
उभरकर लोगों के दिलों में अपनी जगह बना सकेगी।
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