मां शूलिनी की कृपा से सोलन को
मानते हैं लोग स्वर्ग
हिमाचल प्रदेश के विख्यात सोलन नगर का इतिहास बहुत पुराना नहीं है।
अनुमान यह लगाया जाता है कि 18वीं शताब्दी के अंतिम वर्षों में ही कुछ दर्जन भर
लोगों ने इस क्षेत्र में बसना शुरू किया। तभी से यह परंपरा रही है कि मां शूलिनी
की कृपा से सोलन नगर को यहां रहने वाले लो स्वर्ग के समान मानते हैं। आज जब नगर
की जनसंख्या करीब एक लाख हो चुकी है तभी भी यह परंपरा यहां कायम है। लोगों को
प्रयास रहता है कि सोलन की पुरानी सुंदरता को किसी तरह बचा के रखा जा सके। जनगणना के पुराने आंकड़े इस बात का सबूत है कि सोलन नगर का इतिहास बहुत पुराना
नहीं है। सन् 1800 के अंतिम 10 से 15 वर्ष पहले ही यहां कुछ लोगों ने बसना शुरू
किया होगा। हलांकि ब्रिटिश छावनी और डायर मेकिनस का इतिहास इससे से पुराना है।
लेकिन इनमें अधिकतर लोग अंग्रेज ही थे। सन् 1901 की जनगणना के अनुसार इस नगर
में सिर्फ 61 लोग ही रहते थे। कहते हैं यही 61 लोग मां शूलिनी के उपासक थे। जो
इसे मां दुर्गा का अवतार भी मानते थे। अपने कुल सौ वर्ष के इतिहास में ही सोलन
क्षेत्र ने अपनी पहचान भारत वर्ष में बनाई है। सन् 1971 के बाद मां शूलिनी के मेले में प्रशासन ने अपनी रुचि दिखानी शुरू की।
मेले में कुश्तियों के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रमों को भी शामिल किया जाने लगा। . जारी...
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कभी मां शूलिनी
का मेला गंज बाजार में लगता था
क्या आप जानते हैं कि 1950-60 के दशक में शूलिनी मेला गंज बाजार के
दुर्गा मंदिर के पीछे सीधे बड़े खेतों में आयोजित किया जाता था। इस स्थान को
अखाड़ा के नाम से जाना जाता था। समय के साथ शहर बड़ा होता चला गया। अब यहां मकान
ही मकान बन गए हैं। इसलिए पिछले करीब पचास साल में इसका आयोजन ठोडो मैदान में
होता है। समय के साथ मेला मनाने का अंदाज भी बदल गया है। किसी जमाने में किसान इस शूलिनी मेले में घी, शहद, ऊन अदरक व आलू व अन्य चीजें
बेचने के लिए लाते थे और घर का अन्य सामान यहां से खरीदकर ले जाते थे। लोग तीन
दिन तक यहीं ठहरते थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर यहां की परंपरागत नाटिका
‘करयाला’ देखकर आनंदित होते थे। उस समय यहां बिजली नहीं थी। इसलिए रौशनी के लिए
रात भर भलेठी (बिहुल की छिली हुई टहनियां) जलाकर रखते थे। मेले से देर रात
निकटवर्ती क्षेत्रों को लौटते समय वे भलेठी जलाकर रास्ते में रोशनी करते हुए
चलते थे। दूर-दराज के क्षेत्रों से पैदल चलना अब बंद हो गया है। शूलिनी मेला में रियासतों के समय में राजा के विशेष आमंत्रित मेहमान, जिनमें
अंग्रेजी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, नवाब व राजे-महाराजे शामिल होते थे। अब वह
स्थान प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्यपाल जैसे गणमान्य व्यक्तियों ने
ले लिया है। वह इस मेले, विशेषकर शोभायात्रा में जरूर शरीक होते हैं। बड़े-बूढ़ों
के मुताबिक यह मेला उस समय भी आयोजित होता रहा, जब बघाट की राजधानी कोटी,
जौणाजी और बोच हुआ करती थी। . जारी...
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