सुप्रीम कोर्ट का
राज्यपालों पर प्रहार
पिछले दिनों भारत के सुप्रीम कोर्ट ने देश के राज्यपालों की भूमिका पर
कड़ा प्रहार किया है। इस व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रपति को भी पकड़
लिया। सुप्रीम कोर्ट यदि राष्ट्रपति की भूमिका पर भी स्थिति और अधिक स्पष्ट कर
देता तो यह लोकतंत्र के लिए काफी अच्छा होता। बैंच ने प्रांतीय सरकारों के बीच
खड़े होने वाले विवादों पर भारत के संविधान की स्थिति स्पष्ट करने का प्रयास
किया है। जिस पर बवाल मचा है।
सुप्रीम कोर्ट ने भारत के संविधान के संरक्षक होने के नाते एक ऐतिहासिक फैसले
में राज्यपालों के अधिकार की ’सीमा’ की व्याख्या की है। कुछ समय पहले पंजाब के
राज्यपाल द्वारा 7 विधेयक रोकने पर सरकार सुप्रीम कोर्ट गई थी। कोर्ट ने तब भी
कहा था कि राज्यपाल आग से खेल रहे हैं। तमिलनाडु के राज्यपाल ने 2023 में राज्य
सरकार का अभिभाषण पढ़ने से इंकार कर दिया था। वर्ष 2022 में डीएमके ने
राष्ट्रपति से उन्हें हटाने की मांग कर दी थी। तेलंगाना के राज्यपाल ने एमएलसी
नामांकन व बजट मंजूर करने से इंकार कर दिया था। प. बंगाल के तत्कालीन राज्यपाल
जगदीप धनखड़ और मौजूदा राज्यपाल का राज्य सरकार से टकराव जग जाहिर है। ऐसे में
यह जरूरी हो गया था कि भारत के संविधान के संरक्षक अपनी संवैधानिक भूमिका में
उतर आएं।
जारी..
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शाह को प्रधानमंत्री बनने से
कैसे रोकेगा संघ
भाजपा के सबसे तेज नेता और गृहमंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री बनने से
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) कैसे रोक सकेगा। जबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी नागपुर के आरएसएस कार्यालय के दौरे से लौटे हैं तबसे यह बात राजनैतिक
गलियारों में बहुत तेजी से घूम रही है। यह बात फैलाई जा रही है कि अमित शाह
आरएसएस की पसंद नहीं हैं। यदि सभी बातों को मान भी लिया जाए तो भी यह बात सभी को पता है कि आरएसएस की
सबसे बड़ी ताकत उसके लाखों स्वयं सेवक हैं और अमित शाह की ताकत धनशक्ति और उनके
पीछे खड़े कारपोरेट सैक्टर की है। यदि राजनैतिक टकराव आरएसएस और अमित शाह की
लॉबी के बीच होता है तो जाहिर है जीत कारपोरेट लॉबी की भी हो सकती है। यह बात
भी छुपी हुई नहीं है कि जब भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी भाजपा की ओर
से प्रधानमंत्री बनने की मुंडेर पर खड़े थे तो कारपोरेट सैक्टर की एक लॉबी ने ही
उन्हें वहां से पीछे खींचकर श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार
बनवा दिया था। तब आरएसएस भी कारपोरेट सैक्टर की भाषा बोल रही थी। पिछले दिनों करीब 11 वर्ष बाद प्रधानमंत्री आरएसएस के नागपुर कार्यालय में गए
थे इससे पहले वह तब आरएसएस कार्यालय में गए थे जब उन्हें भाजपा के भीतर
प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनना था।
जारी...
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फंस गया वक्फ बिल
पिछले दिनों संसद के दोनों सदनों से पारित वक्फ संशोधन कानून 2025
सुप्रीम कोर्ट में फंस गया। सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना ने
केन्द्र सरकार के उपरोक्त बिल की कुछ धाराओं पर रोक लगा दी है और केन्द्र सरकार
से विभिन्न याचिकों पर जवाब दाखिल करने को कहा है। अब केन्द्र सरकार इसका जवाब अदालत में दाखिल करेगी और वादियों को कापी स्पलाई
की जाएगी। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही आगे बढ़ती जाएगी। फिलहाल कहा जा
सकता है कि इस बिल को लाने में सरकार ने जो जल्दबाजी दिखाई थी उसकी हवा सुप्रीम
कोर्ट में मुख्य न्यायधीश संजीव खन्ना के नेतृत्व में गठित बैंच ने निकाल दी
है। कहते हैं केन्द्र सरकार को इससे एक बड़ा झटका लगा है। यह बात स्पष्ट रूप से
देखी जा रही है कि सरकार के पक्ष में खड़े लोग सुप्रीम कोर्ट पर ही तोहमत लगाने
लगे हैं। कानून के विशेषज्ञ मानते हैं कि अब कुछ ही दिनों में मुख्य न्यायधीश खन्ना
सेवानिवृत होने वाले हैं और फिलहाल वह वादियों को राहत प्रदान कर चुके हैं। अब
नए मुख्य न्यायधीश बी.आर. गवई इस कार्यवाही को कैसे आगे बढ़ाएंगे यह देखने वाली
बात होगी। फिलहाल जो उबाल इस बिल के कानून बनने के बाद उठा था वह शांत हो चुका
है।
जारी...
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ऐसे तो एक दिन
हिमाचल के सभी स्कूल बंद हो जाएंगे
हिमाचल सरकार जिस प्रकार से सरकारी स्कूलों को जिंदा रखने का प्रयास कर
रही है ऐसे तो एक दिन हिमाचल में सभी सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। अब सरकार ने
स्कूलों की दशा सुधारने के स्थान पर अध्यापकों को ही गांव गांव, घर घर जाकर
बच्चों को स्कूल में लाने की ड्यूटी लगा दी है। ऐसे में तो प्रदेश के स्कूलों
में बच्चों की संख्या बढ़ना मुश्किल है। हर साल हिमाचल के सरकारी स्कूलों में छात्रों का नामाकंन घटता जा रहा है और अब
तो आंच कालेजों तक आ पहुंची है। यही कारण है कि सरकार को जीरो एनरोलमेंट या
बच्चों की कम संख्या के चलते कई स्कूलों को बंद करना पड़ा है। सरकार को सोचना
चाहिए कि अब कालेज बंद होने के कगार पर आ गए हैं। सरकार परेशान होकर उन तमाम
पहलुओं पर काम कर रही है, जो उसके दिमाग में आ रहे हैं। सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या का आंकड़ा बढ़ सके इसके लिए स्कूलों में
शिक्षकों की ट्रांसफर के लिए भी युक्तिकरण की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है।
इसमें यह देखा जा रहा है कि कितने ऐसे स्कूल हैं, जहां शिक्षकों की संख्या
बच्चों के मुकाबले कम या ज्यादा है। एक योजना के तहत अब फील्ड सर्वे के दौरान
अध्यापकों को सरकारी स्कूल की उपलब्धियां बताई जाएंगी, जिसे वह लोगों को जा
जाकर बताएंगे। इसमें सरकारी स्कूल में शुरू किए गए विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं
के बारे में भी अभिभावकों को बताया जाएगा।
जारी...
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वक्फ बिल पर
फंस गए नायडू और नितीश

क्या केन्द्र सरकार के वक्फ बोर्ड
बिल को कानून बना देने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और
बिहार के मुख्यमंत्री बुरी तरह से फंस गए हैं। हलांकि इस बिल को सुप्रीम कोर्ट
में फिलहाल मुंह की खानी पड़ी है पर इस बिल से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह
बिल आने वाले समय में चंद्र बाबू और नितीश की राजनीति पर विराम लगा सकता है। वक्फ बिल पास होने का अब यही निचोड़ निकाला जा रहा है कि मोदी सरकार को समर्थन
देने वाले नितीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू के दिन राजनीति में गिने चुने ही
बचे हैं। इनके साथ चलने वाले चिराग पासवान, जयंत चौधरी और जीतनराम मांझी भी
अपनी सेकुलर छवि खो चुके हैं। अब इनके पास अपने जनाधार को बचाने का सिर्फ एक ही
रास्ता बचा है कि यह केन्द्र में मोदी सरकार को पलटने के लिए आगे आएं या फिर सब
डूबने के लिए तैयार रहें। फिलहाल अपनी ही पार्टी में भारी रोष और विरोध के बावजूद उपरोक्त दोनों नेता
मोदी सरकार को झटक कर बाहर आने को तैयार नहीं हैं जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से
उन्हें मोदी सरकार का साथ छोड़ देने की खुली चुनौती दे दी गई है।
जारी...
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जिन्हें कांग्रेस
खत्म नहीं कर सकी उन्हें मोदी ने खत्म कर दिया
जिन
छोटे राजनैतिक दलों को कांग्रेस पिछले दो तीन दशकों से खत्म नहीं कर पाई उन्हें
टीम मोदी ने येन केन प्रकारेण खत्म कर दिया। सभी जानते हैं कि कांग्रेस के वोट
बैंक की ताकत पर ही विभिन्न राज्यों में क्षेत्रीय दल हावी प्रभावी हो गए थे।
अब भी यदि कांग्रेस अपने पुराने जनाधार को वापस प्राप्त नहीं कर पाती है तो यह
मान लिया जाना चाहिए कि कांग्रेस अपनी पारंपरिक राह भटक चुकी है और अब उसमें
लड़ने का मादा बचा नहीं है। कहते हैं राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के पुराने जनाधार को
प्राप्त करने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रखा है लेकिन उनकी योजनाएं परवान नहीं
चढ़ पा रही हैं। इसके लिए मौजूदा कांग्रेस तरह तरह के प्रयोग भी कर रही है पर
असफलता उनके साथ चिपकी हुई है। इसका कारण अब यह भी बताया जा रहा है कि अब भी
कांग्रेस के भीतर 90 फीसदी लोग भाजपा के स्लीपर सेल बनकर बैठे हुए हैं। जो
सिर्फ पदों पर कब्जा किए हुए हैं और विरोधियों पर ऐसे नहीं टूटते हैं जैसे एक
कांग्रेसी को टूटना चाहिए। कांग्रेस को देखकर लगता है कि वह अपनी विचार धारा को पूरी तरह खो चुकी है।
कांग्रेस का इतिहास पढ़ लें और फिर तुलना कर लें कि कांग्रेस की विचारधारा क्या
कहती है और मौजूदा कांग्रेस के छोटे से बड़े नेता क्या बोलते हैं।
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लोगों की नजरें मुख्य न्यायधीश
पर
पिछले करीब एक दशक से लोग अब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायधीश पर नजरें गढ़ाए
रहते हैं। इसका कारण यह है कि लोगों को आस रहती है कि कोई काबिल जज ही सुप्रीम
कोर्ट का मुख्य न्यायधीश होना चाहिए। पिछले कुछ वर्षों में मुख्य न्यायधीशों की
पक्षपातपूर्ण भूमिका पर प्रश्नचिन्ह लगते रहे हैं। अब यूपी में बुल्डोजर एक्शन पर रोक लगाने वाले जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई (बी.आर.
गवई) देश के 52वें चीफ जस्टिस बनने जा रहे हैं। वह मौजूदा सीजेआई जस्टिस संजीव
खन्ना की जगह लेंगे और 14 मई, 2025 को अपना कार्यभार संभालेंगे। जस्टिस खन्ना
का कार्यकाल बतौर मुख्य न्यायधीश बहुत छोटा रहा है लेकिन उनके समक्ष जो मामले
आए उसमें उन्होंने भारत के संविधान का मान बढ़ाने वाले रुख को पकड़े रखा। जस्टिस
गवई का कार्यकाल 23 नवंबर, 2025 तक रहेगा। लोगों को जस्टिस गवई से भी आशा है कि
वह भारत के संविधान की डगर से कानून को एक इंच भी हिलने नहीं देंगे। वह देश के
दूसरे दलित चीफ जस्टिस होंगे। इनसे पहले जस्टिस के.जी. बालाकृष्णन भी सुप्रीम
कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं। यह भी मना जा रहा है कि जस्टिस गवई के
समक्ष बड़ी संवैधानिक जिम्मेदारियां होंगी, क्योंकि जिस प्रकार की याचिकाएं चरचा
में हैं उसमें न्याय के लिए दमदार न्यायधीश की भूमिका बड़ी हो गई है।
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ट्रंप के खिलाफ
अमेरिका में ही बड़ा प्रदर्शन
अमेरिका के राष्ट्रपति
डोनाल्ड ट्रंप ने नए टैरिफ का ऐलान कर पूरी दुनियां में हड़कंप मचा दिया है।
पिछले दिनों ट्रंप के खिलाफ अमेरिका में ही एतिहासिक प्रदर्शन हुआ। जिसमें
ट्रंप जिस प्रकार अमेरिका के नागरिकों के लिए मुसीबतें खड़ी करते जा रहे हैं
उसका जिक्र किया जा रहा है। ट्रंप के खिलाफ पूरे यूरोप में जबरदस्त प्रदर्शन हो
रहे हैं। ट्रंप को राष्ट्रपति बने हलांकि अभी लगभग दो माह का ही समय हुआ है और अमेरिका
में ही उनके समर्थकों ने उनके खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया है। अमेरिका ही
नहीं ब्रिटेन, जर्मनी और कनाडा जैसे राष्ट्रों ने भी ट्रंप के खिलाफ मोर्चा
खोलते हुए कहा है कि ट्रंप ने अपने तानाशाह पूर्ण फैसलों ने पूरी दुनियां को
आर्थिक मंदी की ओर धकेल दिया है। दुनियां भर का मीडिया ट्रंप के खिलाफ जमकर
खबरें छाप रहा है।
ट्रंप के खिलाफ प्रदर्शन में ट्रंप के व्यापारी मित्र एलोन मस्क को भी नहीं
बक्शा जा रहा है। भारत में तो ट्रंप के खिलाफ अंधभक्तों के कारण कोई रोष व्यक्त
नहीं किया जा रहा है लेकिन पूरी दुनियां ट्रंप के पीछे पड़ गई है। विश्व के अन्य
देश ट्रंप की आर्थिक नीति से नहीं डर रहे हैं लेकिन भारत में ट्रंप को लेकर एक
खौफ व्याप्त है जिसके कारण लोगों को कम सूचनाएं मिल रही हैं। हलांकि ट्रंप के
कारण भारत को भारी नुक्सान उठाना पड़ रहा है। भारत के मीडिया के मुंह में तो
लगता है दहीं जम गई है।
जारी
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संपादकीय सबसे दमदार है आर्टिकल 13
भारत
के संविधान में सबसे दमदार आर्टिकल (अनुच्छेद) कोई है तो वह है आर्टिकल 13, जो
किसी भी आदेश को भारत के संविधान से बाहर नहीं भागने देता है। पर बिल्ली के गले
में घंटी कौन बांधे जब देश में संविधान की धज्जियां चारों ओर से उड़ती हुई नजर आ
रही हैं। अब देश के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट ही जब देश में बन रहे हालातों
को काबू नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसे में एक आम नागरिक क्या कर सकता है। उसके पास
अपने मौलिक अधिकार को बचाने के लिए एक सुप्रीम कोर्ट का रास्ता ही बचता है।
बाकि उसके हाथ में कुछ भी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान का
संरक्षक है वहीं अगर आर्टिकल 13 पर गंभीर हो जाए तो सारी समस्या ही हल हो जाए।
आर्टिकल 13 भारत के संविधान में एक ऐसा अनुच्छेद है जो यह कहता है कि जो बात
भारत के संविधान के खिलाफ जाती हो उसे बनते हैं खत्म समझा जाएगा। पर इसका फैसला
करने वाले ही जब भारत के संविधान के प्रति संदेह के घेरे में खड़े हों तो एक
नागरिक के पास लाचार खड़े होने के अतिरिक्त और कौन सा रास्ता बचता है। हमारे
संविधान ने आर्टिकल 51ए में नागरिका को उसकी संवैधानिक डयूटी बताते हुए कहा है
कि वह अपने संवैधानिक इंस्टीट्यूटस को इज्जत देगा। पर जब वही इंस्टीट्यूट भारत
के संविधान के खिलाफ चल रहे हों तो कोई एक नागरिक क्या कर सकता है इसका जिक्र
भारत के संविधान में कहीं नहीं है।
भारत का सुप्रीम कोर्ट ही जब आर्टिकल 13 की कार्यवाही तक पहुंचने में वर्षों
वर्ष लगा देता है तो भारत का संविधान पंगु बना ही नजर आता है। राष्ट्रपति के
बारे में अब क्या कहें वह तो इस शपथ को लेने के बाद भी अपने पद पर मजे से बैठते
हैं कि वह भारत के संविधान का बचाव, संरक्षण और रक्षा सुनिश्चित करेंगे। लेकिन
सभी जानते हैं कि वह अपनी शपथ को कितना पूरी करके रख सकते हैं। ऐसे में आर्टिकल
13 की कार्यवाही की अपेक्षा किस से की जा सकती है। जबकि इस आर्टिकल में स्पष्ट
कहा गया है कि संविधान के खिलाफ जा रही किसी भी बात चाहे वह सुगबुगाहट हो को
पैदा होते ही खत्म माना जाएगा।
.....जारी |
कंगना रणौत हिमाचल आती हैं, सुर्खियां
बटोर ले जाती हैं
सीने तारिका और हिमाचल के मंडी से सांसद कंगना रणौत जब भी हिमाचल आती
हैं सुर्खियां बटोर कर ले जाती हैं। इस बार भी जब वह हिमाचल आई तो उन्होंने मंच
से मौजूदा सुक्खू सरकार पर आक्रमण करते हुए कह दिया कि हिमाचल सरकार ने उन्हें
एक लाख रुपए का बिजली का बिल थमा दिया, जबकि वह यहां कम ही रहती हैं। इसके अलावा
उन्होंने मंत्री विक्रमादित्य सिंह पर किंग-क्वीन की बात कहकर हिमाचल के लोगों
को बता दिया कि वह हिमाचल आई हुई हैं।
भले ही लोकसभा में कंगना रणौत को लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बोलने से पहले
चुपचाप बैठने के लिए कह दिया हो पर जब मंच पर माइक कंगना के हाथ में हो तो सभी
का ध्यान उनकी तरफ रहता है कि वह इस बार क्या ऐसी बात करती हैं कि अखबारों की
सुर्खियों बन जाएं। इस बार भी उन्होंने चिरपरिचित अंदाज में अपने बिजली के बिल
का मामला सार्वजनिक मंच से उठा दिया। लेकिन दूसरे दिन ही बिजली बोर्ड ने उनके
बिल की डिटेल सार्वजनिक करते हुए कह दिया कि उन्हें बिजली बोर्ड ने हाई टेंशन
लाइन से कनेक्शन दिया है। उन्होंने जब अपना बिजली का बिल भरा ही नहीं है तो फिर
पुरानी अदायगी तो नए बिल के साथ आएगी ही। बिजली बोर्ड ने कंगना के बयान को झूठा
बताते हुए कहा कि उन्होंने पूरी तरह जांच परखकर ही कंगना को नियमों के अनुसार
ही बिजली का बिल जारी किया है।
जारी
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यूजीसी का हैरान करने वाला आदेश छात्रों के लिए
पिछले दिनों विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हैरान करने वाला
आदेश देश भर के छात्रों के लिए जारी किया। इस आदेश में कहा गया है कि छात्र
किसी भी विश्व विद्यालय या संस्थान के बारे में पहले जानकारी हांसिल कर लें कि
वह जहां प्रवेश लेने जा रहे हैं वह कहीं फर्जी तो नहीं है। होना तो यह चाहिए था
कि यूजीसी कहती कि हम देश में किसी भी फर्जी विश्वविद्यालय को चलने नहीं देंगे
और जो फर्जी शैक्षणिक संस्थान देश भर में चल रहे हैं उनकी धरपकड़ के लिए सरकारों
से कहेंगे ताकि देश के बच्चें इस प्रकार के फर्जी संस्थानों द्वारा ठगे न जाएं।
इसके विपरीत यूजीसी ने छात्रों, अभिभावकों और आम जनता को फर्जी विश्वविद्यालयों
और शिक्षण संस्थानों को लेकर एक सतर्कता आदेश जारी किया है। पिछले दिनों यूजीसी
ने निर्देश जारी किए हैं कि केवल वही विश्वविद्यालय या संस्थान जो किसी राज्य
अधिनियम, केंद्रीय अधिनियम या प्रांतीय अधिनियम के तहत स्थापित हैं, वह ही वैध
रूप से डिग्री जारी कर सकते हैं। फर्जी संस्थानों द्वारा दी गई डिग्रियों को न
तो मान्यता प्राप्त होगी और न ही इन्हें उच्च शिक्षा या सरकारी नौकरियों के लिए
वैध माना जाएगा। दरअसल छात्रों को ठगी से बचाने के लिए यूजीसी ने सभी संस्थानों
को अपनी सलाह दी है कि वे प्रवेश लेने से पहले यूजीसी की आधिकारिक वेबसाइट पर
मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालयों और संस्थानों की सूची देखें। इसके साथ ही
छात्रों को यह भी सलाह दी गई है कि यदि स्नातक या स्नोतकोत्तर पाठ्यक्रम में
प्रवेश लेने की योजना बना रहे हैं तो पहले सुनिश्चित कर लें कि
विश्वविद्यालय मान्यता प्राप्त है।
जारी
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डमी एडमिशन के खिलाफ अब हिमाचल शिक्षा बोर्ड भी
हुआ
डमी एडमिशन के खिलाफ अब हिमाचल प्रदेश शिक्षा बोर्ड भी हो गया है। अब
ऐसे स्कूलों की धरपकड़ की जा रही है जो स्कूल में कई गुणा पैसे लेकर छात्रों को
डमी एडमिशन दे देते हैं। ऐसे छात्र चंडीगढ़ या अन्य स्थानों के कोचिंग सेंटर में
कोचिंग ले रहे होते हैं। बाद में यह बच्चे अपने डमी एडमिशन वाले स्कूल में
परीक्षाएं देने पहुंच जाते हैं और टॉप पोजीशन्स पर पहुंच जाते हैं।
इस पर अंकुश लगाने का कार्य सीबीएसई ने पहले ही कर रखा है। अब हिमाचल प्रदेश
स्कूल शिक्षा बोर्ड ने संबद्धता प्राप्त निजी शिक्षण संस्थानों का औचक निरीक्षण
करने का निर्णय लिया गया है। औचक निरीक्षण में यदि किसी निजी संस्थान में डमी
एडमिशन पाई जाती है तो संबद्धता रेगुलेशन के निर्धारित नियमों के तहत संस्थान
को प्रदान की गई संबद्धता को सक्षम अधिकारी द्वारा तुरंत वापस ले सकता है। इस
आदेश से कई प्रायवेट स्कूलों की हवा टाइट हो गई है।
हिमाचल प्रदेश स्कूल शिक्षा बोर्ड को मिली शिकायतों में कहा जा रहा था कि कुछ
संस्थानों द्वारा अपने विद्यालय में डमी एडमिशन करवाई जाती है। ऐसे मामलों में
सीबीएसई बोर्ड द्वारा उनसे संबद्धता प्राप्त संस्थानों की इस संदर्भ में
जांच की जा रही है और जांच में यदि यह पाया गया कि संस्थानों द्वारा डमी एडमिशन
करवाई गई है तो ऐसे संस्थानों की संबद्धता रद्द करने पर भी विचार किया जा रहा
है।
जारी
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अलविदा भगत सिंह की भूमिका निभाने
वाले
शहीदेआजम भगत सिंह की शानदार भूमिका निभाने वाले अभिनेता मनोज कुमार का
पिछले दिनों निधन हो गया। देश भक्ति पर आधारित फिल्में करने वाले मनोज कुमार को
सदियों तक याद किया जाएगा। उनके निधन पर देश विदेश से श्रद्धांजलि संदेश भेजे
गए हैं। यह मनोज कुमार की शानदार अदाकारी का ही कमाल था कि उन्होंने शहीद फिल्म में
सरकार भगत सिंह की भूमिका निभाकर पूरे देश को याद करवाया कि भगत सिंह ने आजादी
के लिए कैसे फांसी के फंदे को हंसते हुए चूम लिया। मशहूर एक्टर-डायरेक्टर मनोज
कुमार का मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में निधन हुआ। वह 87 साल के थे। विशेष रूप
से अपनी देशभक्ति फिल्मों के लिए मशहूर मनोज कुमार को भारत कुमार के नाम से भी
जाना जाता था। शहीद, उपकार, पूरब-पश्चिम, क्रांति, रोटी कपड़ा और मकान उनकी बेहद
कामयाब फिल्में रहीं।
मनोज कुमार के बेटे कुणाल गोस्वामी ने बताया कि उन्हें लंबे समय से स्वास्थ्य
संबंधी परेशानियां थीं। यह भगवान की कृपा है कि उन्हें आखिरी समय में ज्यादा
परेशानी नहीं हुई। शांतिपूर्वक उन्होंने इस दुनियां को अलविदा कह दिया।
जारी
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निगम कार्यकाल के अंतिम बजट से कोई उम्मीद नहीं
सोलन में बिक सकेंगे पुराने कबाड़ में दिए जाने वाले वाहन
जियो जिंदगी संस्था
उपायुक्त सोलन से मिली
जारी... |
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गली मुहल्ले से एनटीटी करने वालों को नौकरी नहीं
आखिर कितना राजस्व निचोड़ेगी हिमाचल सरकार शराब से
भयंकर तूफान और बारिश से भारी नुक्सान
जारी... |
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