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संपाकीय

सबसे दमदार है आर्टिकल 13

     भारत के संविधान में सबसे दमदार आर्टिकल (अनुच्छेद) कोई है तो वह है आर्टिकल 13, जो किसी भी आदेश को भारत के संविधान से बाहर नहीं भागने देता है। पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे जब देश में संविधान की धज्जियां चारों ओर से उड़ती हुई नजर आ रही हैं। अब देश के राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट ही जब देश में बन रहे हालातों को काबू नहीं कर पा रहे हैं तो ऐसे में एक आम नागरिक क्या कर सकता है। उसके पास अपने मौलिक अधिकार को बचाने के लिए एक सुप्रीम कोर्ट का रास्ता ही बचता है। बाकि उसके हाथ में कुछ भी नहीं है। सुप्रीम कोर्ट जो भारत के संविधान का संरक्षक है वहीं अगर आर्टिकल 13 पर गंभीर हो जाए तो सारी समस्या ही हल हो जाए।
     आर्टिकल 13 भारत के संविधान में एक ऐसा अनुच्छेद है जो यह कहता है कि जो बात भारत के संविधान के खिलाफ जाती हो उसे बनते हैं खत्म समझा जाएगा। पर इसका फैसला करने वाले ही जब भारत के संविधान के प्रति संदेह के घेरे में खड़े हों तो एक नागरिक के पास लाचार खड़े होने के अतिरिक्त और कौन सा रास्ता बचता है। हमारे संविधान ने आर्टिकल 51ए में नागरिका को उसकी संवैधानिक डयूटी बताते हुए कहा है कि वह अपने संवैधानिक इंस्टीट्यूटस को इज्जत देगा। पर जब वही इंस्टीट्यूट भारत के संविधान के खिलाफ चल रहे हों तो कोई एक नागरिक क्या कर सकता है इसका जिक्र भारत के संविधान में कहीं नहीं है।
     भारत का सुप्रीम कोर्ट ही जब आर्टिकल 13 की कार्यवाही तक पहुंचने में वर्षों वर्ष लगा देता है तो भारत का संविधान पंगु बना ही नजर आता है। राष्ट्रपति के बारे में अब क्या कहें वह तो इस शपथ को लेने के बाद भी अपने पद पर मजे से बैठते हैं कि वह भारत के संविधान का बचाव, संरक्षण और रक्षा सुनिश्चित करेंगे। लेकिन सभी जानते हैं कि वह अपनी शपथ को कितना पूरी करके रख सकते हैं। ऐसे में आर्टिकल 13 की कार्यवाही की अपेक्षा किस से की जा सकती है। जबकि इस आर्टिकल में स्पष्ट कहा गया है कि संविधान के खिलाफ जा रही किसी भी बात चाहे वह सुगबुगाहट हो को पैदा होते ही खत्म माना जाएगा।
     भारत के सुप्रीम कोर्ट में ऐसे कई मामले हैं और न जाने कितने मामले अदालत में जाने को तैयार बैठे हैं जो आर्टिकल 13 लगाकर तुरंत नेस्तानाबूत किए जा सकते हैं। पर यह भारत के संविधान की सबसे बड़ी पीड़ा है कि ऐसे मामलों में जल्दी निपटारा नहीं हो पाता है और जब निपटारा होता है तो उसकी प्रासंगिकता ही समाप्त हो चुकी होती है। हम सिर्फ इस बात पर ही गर्व कर सकते हैं कि हमारे संविधान निर्माताओं ने देश को एक ऐसा संविधान दिया है जो नागरिकों की हर तरह से ढाल बन सकता है। शायद उन्हें यह आभास नहीं था कि इस संविधान की सुरक्षा की बात करने वाले जो लोग भविष्य में सामने आएंगे उनकी आत्मा मर चुकी होगी और वह भारत के संविधान से खिलवाड़ करने वालों की पदवी लेकर सेवानिवृत होते चले जाएंगे। आज देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो भारत के संविधान को ठोकर मारकर शान से चलते हैं और संविधान का आर्टिकल 13 उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाता है।

 
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