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उप-चुनाव में कांग्रेस के लिए राह आसान नहीं

सुक्‍खू सरकार टिकी, जयराम क्‍या कहेंगे

विशेष संवाददाता

     शिमला : लोकसभा चुनाव के साथ हुए छह उप चुनाव में से साल स्थानों पर जीत दर्ज कर प्रदेश की सुक्खू सरकार बहुमत में आ गई है। इसके बाद अब प्रदेश में तीन और उप-चुनाव हो रहे हैं। इसमें कांग्रेस की राह आसान नहीं है। अब इस बात के भी कोई मायने नहीं रह गए हैं कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार है तो लोग कांग्रेस को ही वोट देंगे।
     पिछले विधानसभा उन-चुनावों में छह कांग्रेस के बागी विधायकों को विधानसभा ने निकाल दिया गया था। इन सीटों पर लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा उप-चुनाव भी हो गए थे। इसमें कांग्रेस को यह झटका लगा कि उसकी छह सीटें चली गई और चार वापस आ गई। कुल दो सीटों का नुक्सान कांग्रेस पार्टी को हुआ। लेकिन अब परिस्थितियां बिलकुल अलग हैं।
     हलांकि जयराम ठाकुर दावाकर रहे थे कि चार जून को जब परिणाम निकलेंगे तो केन्द्र में जहां मोदी सरकार होगी वहीं हिमाचल प्रदेश में भाजपा की सरकार विराजमान हो जाएगी। इस जयराम से से कुछ कहे नहीं बन रहा है। वह इस बात को करना भी पसंद नहीं कर रहे हैं।
     तीन आजाद प्रत्याशियों ने भाजपा में शामिल होकर अपने विधायक पदों से इस्तीफा दे दिया था। अब इन खाली सीटों पर विधानसभा उप-चुनाव हो रहे हैं। यह तीनों पूर्व विधायक अब भाजपा की टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे हैं। यहां गौर करने वाली बात यह है कि यह तीनों सीटें पहले भी कांग्रेस के पास नहीं थीं। यह तीनों पूर्व विधायक कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रत्याशियों को हराकर विधानसभा में पहुंचे थे। कहा जा सकता है कि इन तीनों के पास अपना एक बड़ा जनाधार है और अब भाजपा के वोट भी इन्हें मिलेंगे। हलांकि भाजपा में शामिल होकर फिर से उप-चुनाव में उतरने के कारण कुछ जगह इनका विरोध होना स्वाभापिक ही है। लेकिन वह इनके पक्ष से चुनाव छीनकर ले जाएंगे इसकी संभावना बहुत कम है।
     पहले कहते थे कि जिसकी प्रांत में सरकार होती थी उनके लिए चुनाव जीतना आसान होता था। लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में चारों सीटें हारने के कारण यह मिथ भी अब टूटा हुआ ही नजर आने लगा है। लोग इस बात की परवाह कम ही करते हैं कि प्रदेश में किसकी सरकार चल रही है। इसका भी कारण स्पष्ट है कि सरकारें अब अपने नागरिकों के लिए कुछ भी नहीं करती हैं। एक सरकार आती है फिर वह बदल जाती है और लोगों के हाथ हर सरकार में खाली रह जाते हैं।
     इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि मुख्यमंत्री सुखविन्दर सिंह के लिए यह तीन चुनाव जीतना आसान नहीं होगा। यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि कांगड़ा की देहरा सीट पर मुख्यमंत्री की धर्मपत्नी चुनाव मैदान में है। यदि सुक्खू इस सीट को जीतने में सफल हो जाते हैं तो उनकी यह बड़ी उपलब्धी मानी जा सकती है। हलांकि अगर कांग्रेस इन तीनों सीटों में चुनाव हार भी जाती है तो भी बहुमत के आंकड़े पर कोई असर नहीं पड़ेगा। क्योंकि पिछले उप-चुनाव में सरकार 36 पर पहुंच चुकी है।

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