वक्फ बिल पर
फंस गए नायडू और नितीश कुमार
अभी भी मोदी
को पलटने के लिए कदम उठा सकते हैं...

क्या केन्द्र सरकार के वक्फ बोर्ड
बिल को कानून बना देने के बाद आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू और
बिहार के मुख्यमंत्री बुरी तरह से फंस गए हैं। हलांकि इस बिल को सुप्रीम कोर्ट
में फिलहाल मुंह की खानी पड़ी है पर इस बिल से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह
बिल आने वाले समय में चंद्र बाबू और नितीश की राजनीति पर विराम लगा सकता है।
वक्फ बिल पास होने का अब यही निचोड़ निकाला जा रहा है कि मोदी सरकार को समर्थन
देने वाले नितीश कुमार और चंद्र बाबू नायडू के दिन राजनीति में गिने चुने ही
बचे हैं। इनके साथ चलने वाले चिराग पासवान, जयंत चौधरी और जीतनराम मांझी भी
अपनी सेकुलर छवि खो चुके हैं। अब इनके पास अपने जनाधार को बचाने का सिर्फ एक ही
रास्ता बचा है कि यह केन्द्र में मोदी सरकार को पलटने के लिए आगे आएं या फिर सब
डूबने के लिए तैयार रहें।
फिलहाल अपनी ही पार्टी में भारी रोष और विरोध के बावजूद उपरोक्त दोनों नेता
मोदी सरकार को झटक कर बाहर आने को तैयार नहीं हैं जबकि मुस्लिम पक्ष की ओर से
उन्हें मोदी सरकार का साथ छोड़ देने की खुली चुनौती दे दी गई है। मोदी सरकार की
ओर से जो बयान सामने आ रहे हैं उसे देखकर लगता है कि मुस्लिमों की धार्मिक
संपत्तियों को लेकर जो वक्फ बोर्ड संशोधन अधिनियम संसद में लाया गया है उसे
एनडीए की मोदी सरकार येनकेन प्रकारेण पास करवाने के बाद तुरंत उस पर कार्यवाही
शुरू कर देगी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इन मंसोबों पर पानी फेर दिया है। यह बात
भी छुपी हुई नहीं है कि भाजपा का किसी बिल को जबरन पास करवा लेने का पिछला
रिकार्ड क्या रहा है और वक्फ बिल भी अब उसी का हिस्सा है।
अब जो हालात बिहार में बने हुए हैं और जेडीयू के नेताओं के इस्तीफों में झड़ी
लगी हुई है उससे बिहार के नितीश कुमार की राजनीति का सूर्य अस्त होने वाला है।
वैसे भी बिहार में चुनाव के लिए कुछ ही महीने का समय शेष बचा है। कहते हैं कि
वक्फ बिल का समर्थन करने पर मुस्लिम मतदाता उनसे दूर हो चुका है। क्योंकि वक्फ
बिल या मुस्लिमों के साथ हो रहे व्यवहार के कारण आम मुस्लिम मतदाता नितीश कुमार
के खिलाफ ही है। अब उसे यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है कि नितीश कुमार सेकुलर होने
के बावजूद सांप्रदायिक ताकतों के साथ खड़े हैं। नितीश कुमार यदि मोदी सरकार को
गिराने में कुछ सहयोग करते हैं तो नितीश की हालत मुस्लिम मतदाताओं में कुछ हद
तक सुधर सकती थी। इसकी संभावना भी अब खत्म हो चुकी है क्योंकि अब अंतिम आस
सुप्रीम कोर्ट की चौखट पर पहुंच चुकी है।
आंध प्रदेश के चंद्रबाबू नायडू की स्थिति भी नितीश कुमार की तरह ही है, पर उनके
सामने फिलहाल कोई चुनाव नहीं है। इसलिए पहले बारी नितीश कुमार की आएगी उसके बाद
नायडू बाबू का नम्बर लगेगा। मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है तब से प्रतिदिन
यही कयास हर रोज लगाए जा रहे हैं कि यह दोनों नेता अब एनडीए से बाहर आने वाले
हैं। सियासी तिकड़मों में रास्ते निकालकर नितीश और नायडू अभी भी मोदी सरकार के
पालनहार बने हुए हैं।
इस चुहा बिल्ली के खेल से मुस्लिम मतदाता उक्ता चुका है और वह मन बना चुका है
कि भविष्य में दोनों नेताओं के साथ वह चलने को तैयार नहीं है। मुस्लिम पक्ष के
लोगों का कहना है कि दोनों नेताओं के खिलाफ सेकुलर ताकतों में भारी गुस्सा है।
आम मुस्लिम मतदाता तो वक्फ बिल को लेकर दोनों नेताओं के खिलाफ हो चुका है और
उसके सब्र का बांध भी टूट चुका है। वह पूरे देश में सड़कों पर उतरकर विरोध दर्ज
कर रहा है।
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