शाह को प्रधानमंत्री बनने से
कैसे रोकेगा संघ
आरएसएस के पास
जनशक्ति, शाह के पास धनशक्ति...
विशेष संवाददाता
शिमला : भाजपा के सबसे तेज नेता और गृहमंत्री अमित शाह को प्रधानमंत्री बनने से
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) कैसे रोक सकेगा। जबसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र
मोदी नागपुर के आरएसएस कार्यालय के दौरे से लौटे हैं तबसे यह बात राजनैतिक
गलियारों में बहुत तेजी से घूम रही है। यह बात फैलाई जा रही है कि अमित शाह
आरएसएस की पसंद नहीं हैं।
यदि सभी बातों को मान भी लिया जाए तो भी यह बात सभी को पता है कि आरएसएस की
सबसे बड़ी ताकत उसके लाखों स्वयं सेवक हैं और अमित शाह की ताकत धनशक्ति और उनके
पीछे खड़े कारपोरेट सैक्टर की है। यदि राजनैतिक टकराव आरएसएस और अमित शाह की
लॉबी के बीच होता है तो जाहिर है जीत कारपोरेट लॉबी की भी हो सकती है। यह बात
भी छुपी हुई नहीं है कि जब भाजपा के वरिष्ठतम नेता लालकृष्ण आडवाणी भाजपा की ओर
से प्रधानमंत्री बनने की मुंडेर पर खड़े थे तो कारपोरेट सैक्टर की एक लॉबी ने ही
उन्हें वहां से पीछे खींचकर श्री नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार
बनवा दिया था। तब आरएसएस भी कारपोरेट सैक्टर की भाषा बोल रही थी।
पिछले दिनों करीब 11 वर्ष बाद प्रधानमंत्री आरएसएस के नागपुर कार्यालय में गए
थे इससे पहले वह तब आरएसएस कार्यालय में गए थे जब उन्हें भाजपा के भीतर
प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनना था। पिछले 11 वर्षों में आरएसएस को ऐसा लगने
लगा था कि उसकी पकड़ अब भाजपा में नहीं रही है। उधर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी
भी पिछले लोकसभा चुनावों में पूर्णबहुमत का आंकड़ा प्राप्त नहीं कर पाए थे। शायद
यही वजह है कि आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के इस
मिलन का संयोग बना। हलांकि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा तो
पहले ही कह चुके थे कि भाजपा को अब आएएसएस की जरूरत नहीं है।
सबसे बड़ा सवाल यहां आकर खड़ा हो गया है कि मोदी के बाद भाजपा को आगे कौन बढ़ाएगा।
क्या आरएसएस का वृहदहस्त भाजपा से हट जाएगा और अब उसकी स्वीकृति से देश का
प्रधानमंत्री भाजपा नहीं बनाएगी। कहते हैं कि आरएसएस की अगर चली तो वह अपनी
पसंद का प्रधानमंत्री भाजपा को देगी और उसमें अमित शाह आरएसएस की पसंद नहीं
हैं। इसी के साथ दूसरा प्रश्न यह भी खड़ा होता है कि जिस कारपोरेट सैक्टर ने
नरेन्द्र मोदी को इतने लंबे समय तक प्रधानमंत्री बनाए रखा उसकी पहली पसंद अमित
शाह ही होंगे। अब सारा दारोमदार इस बात पर आकर टिक गया है कि भाजपा की राजनीति
में ज्यादा दमदार आएसएस रहती है या कारपोरेट सैक्टर। अब शायद भाजपा के भीतर जो
भी मंथन होगा। उसमें यही बात मायने रखेगी कि अगला प्रधानमंत्री आरएसएस का होगा
या कारपोरेट सैक्टर का जिसने भाजपा को मालामाल बना दिया है।
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