ऐसे तो एक दिन
हिमाचल के सभी स्कूल बंद हो जाएंगे
घर घर अध्यापकों को भेजने से कुछ नहीं होने वाला...
विशेष संवाददाता
शिमला : हिमाचल सरकार जिस प्रकार से सरकारी स्कूलों को जिंदा रखने का प्रयास कर
रही है ऐसे तो एक दिन हिमाचल में सभी सरकारी स्कूल बंद हो जाएंगे। अब सरकार ने
स्कूलों की दशा सुधारने के स्थान पर अध्यापकों को ही गांव गांव, घर घर जाकर
बच्चों को स्कूल में लाने की ड्यूटी लगा दी है। ऐसे में तो प्रदेश के स्कूलों
में बच्चों की संख्या बढ़ना मुश्किल है।
हर साल हिमाचल के सरकारी स्कूलों में छात्रों का नामाकंन घटता जा रहा है और अब
तो आंच कालेजों तक आ पहुंची है। यही कारण है कि सरकार को जीरो एनरोलमेंट या
बच्चों की कम संख्या के चलते कई स्कूलों को बंद करना पड़ा है। सरकार को सोचना
चाहिए कि अब कालेज बंद होने के कगार पर आ गए हैं। सरकार परेशान होकर उन तमाम
पहलुओं पर काम कर रही है, जो उसके दिमाग में आ रहे हैं।
सरकारी स्कूलों में बच्चों की संख्या का आंकड़ा बढ़ सके इसके लिए स्कूलों में
शिक्षकों की ट्रांसफर के लिए भी युक्तिकरण की प्रक्रिया भी अपनाई जा रही है।
इसमें यह देखा जा रहा है कि कितने ऐसे स्कूल हैं, जहां शिक्षकों की संख्या
बच्चों के मुकाबले कम या ज्यादा है। एक योजना के तहत अब फील्ड सर्वे के दौरान
अध्यापकों को सरकारी स्कूल की उपलब्धियां बताई जाएंगी, जिसे वह लोगों को जा
जाकर बताएंगे। इसमें सरकारी स्कूल में शुरू किए गए विभिन्न छात्रवृत्ति योजनाओं
के बारे में भी अभिभावकों को बताया जाएगा।
कुल मिलाकर प्रदेश सरकार जो प्रयास कर रही है वह बच्चों के अभिभावकों आकर्षित
करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। इसके लिए सरकार को किसी बड़ी योजना पर युद्ध
स्तर पर कार्य करने की जरूरत है। सबसे पहले सरकार को यह जानने की जरूरत है कि
सरकारी स्कूलों से अभिभावक अपने बच्चों को क्यों निकाल रहे हैं। इसका सबसे बड़ा
कारण यह है कि सरकार ने बिना सोचे विचारे प्रायवेट प्लेयर्स को छोटे छोटे
कस्बों में भी स्कूल खोलन के लाइसेंस दे दिए हैं। हलांकि बहुत से स्कूल
एसीसीटीई की गइडलाइंस पर भी खरा नहीं उतरते हैं।
सरकार को इस बात पर अध्ययन करना चाहिए कि सरकारी स्कूलों को छोड़कर बच्चे किस
क्षेत्र के किस प्रायवेट स्कूल में जा रहे हैं और वह स्कूल बच्चों को ऐसी कौन
सी सुविधाएं दे रहा है जो सरकारी स्कूल नहीं दे पा रहे हैं। इसके साथ सरकार को
यह भी देखना चाहिए कि किस स्कूल में कितने अध्यापक हैं और वह सभी कक्षाओं को
निर्धारित मापदंडों के अनुसार पढ़ा भी रहे हैं या नहीं। इसके लिए मुख्य टीचर्स
और डिप्टी डायरेक्टर के प्रतिदिन नोटस बनवाए जाने जरूरी हैं। स्कूलों की हर
सप्ताह यह रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए कि वहां शौचालयों से लेकर पीने के पानी
की क्या व्यवस्था है। बच्चों के स्कूल की बिल्डिंग और उनके बैठने की दशा में
क्या सुधार किया जा सकता है। स्कूल में बच्चों के पढ़ने का आनंददायक माहौल है या
उसमें क्या सुधार किया जा सकता है।
हलांकि हिमाचल प्रदेश की सड़ चुकी शिक्षा व्यवस्था को सुधारना आसान कार्य नहीं
है। लेकिन कम खर्चे में व्यवस्थाओं को सुधारने की दिशा में आगे बढ़ जा सकता है।
सरकार का कार्य सबसे पहले स्कूल को स्कूल की तरह बनाने की दिशा में आगे बढ़ने की
जरूरत है। जाहिर है जब सरकारी स्कूल प्रायवेट स्कूलों से अच्छा माहौल देंगे तो
कोई अभिभावक अपने बच्चे को महंगे और नाकारे प्रायवेट स्कूल में दाखिल क्यों
करवाएगा। कौन सा ऐसा अभिभावक होगा जो बच्चे को एक लाख वेतन वाले अध्यापक के
स्थान पर 5000 रुपए वेतन लेने वाले अध्यापक से पढ़वाना पसंद करेगा। हम सरकार को
शिक्षा का बजट बढ़ाने के लिए नहीं कहेंगे, लेकिन शिक्षण संस्थानों में माहौल और
व्यवस्थाएं बनाने के लिए जरूर कहेंगे। प्रदेश में स्कूल भले ही कम हों लेकिन
संपूर्ण स्कूल होने अनिवार्य हैं जहां किसी कमी के लिए कोई बहाना न हो। सरकार
मूलभूत कमी को दूर करने के लिए स्कूल प्रबंधन को आम लोगों से चंदा लेने की
इजाजत दे सकती है जिसे स्कूल कल्याण के लिए कड़ाई से खर्च किया जाए।
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