मेले में
व्यापार का बुरा हाल
संजय हिंदवान
मेले हमेशा व्यापारियों और दुकानदारों के लिए खुशी
लेकर आते हैं। दुकानदारों की इच्छा रहती है कि मेले में वह भीड़-भाड़ का लाभ
उठाकर अच्छा व्यवसाय करेंगे। लेकिन शूलिनी मेला अब व्यापारियों के लिए खुशी
लेकर नहीं आता है। मेले के दौरान रेहड़ी फड़ही और स्टाल वाले तो खूब पैसा कमा कर
चले जाते हैं और लाखों रुपए किराए की दुकान चलाने वाले मुंह ताकते रह जाते हैं।
शूलिनी मेला सिर्फ एक धार्मिक मेला नहीं है। कई दशकों से सोलन और आसपास के लोग
शूलिनी मेला में कई तरह की खरीददारी करते हैं। ये भी कहा जा सकता है कि अब तो
मई तक सोलन नगर और इसके आसपास के क्षेत्रों में सर्दी का मौसम रहता है। इसलिए
गर्मियों के वरिधानों की खरीददारी शूलिनी मेले में ही होती है। इससे पहले भी
कुछ मेले शूलिनी मेले से पहले आसपास के इलाकों में आयोजित होते हैं। अब तो
इनमें भी जमकर खरीददारी होती है।
शूलिनी मेले से पहले भी ठोडो ग्राउंड में अब व्यापारिक मेले आयोजित होने लगे
हैं। इसमें भी खूब माल बाहर से लाकर और स्टाल लगाकर व्यापारी बेच जाते हैं।
वैसे भी सोलन के लोग आन लाइन शॉपिग और चंडीगढ़ से खरीददारी करके स्थानीय
व्यापारियों की कमर तोड़ चुके हैं। इस प्रतिस्पर्धा में स्थानीय व्यापारियों को
भारी मशक्त करनी पड़ रही है। सोलन के बचे खुचे लोगों की बीच स्थानीय दुकानदार
अपना धंधा करके मुश्किल से अपनी गुजर बसर कर रहे हैं।
प्रतिस्पर्धा के इस काल में सोलन का सारा व्यापार कुछ दुकानदारों तक सिमटकर रह
गया है। ग्राहकों को अपनी ओर खींचने के लिए समझदार दुकानदारों ने जहां अपना
दायरा बढ़ा लिया है वहीं अब कारगर विज्ञापनों के माध्यम से वह ग्राहकों तक पहुंच
रहे हैं। कहा जा सकता है कि प्रतिस्पर्धा के इस युग में विज्ञापन ही दुकानदार
का एक मात्र सहारा हैं। यूं भी सोलन नगर अब काफी बड़ा हो चुका है और सिर्फ जान
पहचान के दम पर दुकानदारी करना मुर्खतापूर्ण कार्य ही कहा जा सकता है। यही वजह
है कि पिछले एक दशक में कई छोटी छोटी दुकाने बंद हो गई हैं और अब दुकान खोलने
से पहले युवा दस बार सोचने लगे हैं। कहा जा सकता है कि अब अच्छी दुकान खोलने के
लिए एक अच्छी योजना बनाना भी आसान नहीं है।
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