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शिमला हिल्‍स का सबसे बड़ा है शूलिनी मेला

     मां शूलिनी के नाम से सोलन नगर में हर वर्ष मनाया जाने वाला तीन दिवसीय मेला शिमला हिल्स क्षेत्र का सबसे बड़ा पर्व बनाता जा रहा है। यूं तो इस क्षेत्र में दीपावली, होली और अन्य पर्व भी बड़ी धूमधाम से मनाए जाते हैं लेकिन शूलिनी मेला यहां का ऐसा पर्व है जिसे सभी लोग पूरी श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते हैं। इस मेले के वृहृद बनते जाने का सबसे बड़ा कारण मैदानी इलाकों में तपती गर्मी भी है। पिछले दो दशकों से यह बात महसूस की जा रही है कि मैदानी इलाकों में जून माह के मौसम में सूर्य देव आग उगलते हैं। ऐसे में पहाड़ों की ठंडी वादियों में देश के हार कोने में रहने वाला व्यक्ति लालालियत रहता है। उस पर यदि उसे मनोरंजन से ओतप्रोत मेले में जाने का सौभाग्य प्राप्त हो जाए तो वह अपने आपको धन्य समझता है।
     चंडीगढ़ और शिमला नगर के रास्ते पर पड़ने वाला सोलन नगर यहां आने वाले हर शक्स को यहां कुछ दिन बिताने पर मजबूर कर देता है। शिमला हिल्स के नाम से विख्यात यह क्षेत्र पहाड़ों की गोद में बसा है। कहते हैं जून माह में यह नगर किसी स्वर्ग से कम नहीं लगता है। शाम को चलने वाली शीतल हवाएं हर किसी को त्रिप्त कर देती हैं। जब लगभग पूरा देश सूर्य देवता के प्रचंड ताप में झुलस रहा होता है तो शिमला हिल्स की याद देश विदेश के कोने कोने में रहने वाले व्यक्ति के मन में शिमला की याद को ताजा कर देती है। अंग्रेजों के समय से ही शिमला हिल्स एक विशेष आकर्षण का केन्द्र रहा है। यहां के गांव में लगने वाले छोटे छोटे पारंपरिक मेले पर्यटकों को बहुत भाते हैं।
     इन मेलों में शूलिनी मेला ने कुछ ही वर्षों में अपना बड़ा नाम कमाया है। हिमाचल के पुनर्गठन 1965 के बाद शूलिनी मेले का आयोजन बड़े स्वरूप में किया जाने लगा। मां शूलिनी की पालकी बाजार में निकालने की परंपरा भी 70 के दशक में ही शुरू की गई। इसी दौरान जिला प्रशासन ने भी मेले के आयोजन में अपना हाथ आगे बढ़ाया। यह बात भी तय है कि जितने लोग इस मेले में शामिल होते हैं उसके लिए जिला प्रशासन की भूमिका और भी पेचिदा हो गई है।
     तीन दिन तक लाखों लोगों के मेले में शिरकत करने के कारण ही अब कहा जाने लगा है कि सोलन नगर और शिमला हिल्स के लोगों के लिए शूलिनी मेला दीपावली और होली जैसे पर्वों से भी बड़ा पर्व हो गया है। इस मेले में सभी धर्मों के लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं और यह कामना करते हैं कि वह सौहाद्र पूर्ण तरीके से रहें और कुदरत की इस देन को बरकरार रखें जैसी हमें विरासत में मिली है। सभी इस बात के प्रति चिंतित भी रहते हैं कि बाहर से आए अतिथियों में भी यह मेला अलग स्थान बनाए और साथ ही यहां रहने वाले लोगों में भी अमन चैन बना रहे।

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