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कभी मां शूलिनी का मेला गंज बाजार में लगता था

विशेष संवाददाता

     शिमला : क्या आप जानते हैं कि 1950-60 के दशक में शूलिनी मेला गंज बाजार के दुर्गा मंदिर के पीछे सीधे बड़े खेतों में आयोजित किया जाता था। इस स्थान को अखाड़ा के नाम से जाना जाता था। समय के साथ शहर बड़ा होता चला गया। अब यहां मकान ही मकान बन गए हैं। इसलिए पिछले करीब पचास साल में इसका आयोजन ठोडो मैदान में होता है। समय के साथ मेला मनाने का अंदाज भी बदल गया है।
     किसी जमाने में किसान इस शूलिनी मेले में घी, शहद, ऊन अदरक व आलू व अन्य चीजें बेचने के लिए लाते थे और घर का अन्य सामान यहां से खरीदकर ले जाते थे। लोग तीन दिन तक यहीं ठहरते थे। सांस्कृतिक कार्यक्रम के नाम पर यहां की परंपरागत नाटिका ‘करयाला’ देखकर आनंदित होते थे। उस समय यहां बिजली नहीं थी। इसलिए रौशनी के लिए रात भर भलेठी (बिहुल की छिली हुई टहनियां) जलाकर रखते थे। मेले से देर रात निकटवर्ती क्षेत्रों को लौटते समय वे भलेठी जलाकर रास्ते में रोशनी करते हुए चलते थे। दूर-दराज के क्षेत्रों से पैदल चलना अब बंद हो गया है।
     शूलिनी मेला में रियासतों के समय में राजा के विशेष आमंत्रित मेहमान, जिनमें अंग्रेजी सरकार के वरिष्ठ अधिकारी, नवाब व राजे-महाराजे शामिल होते थे। अब वह स्थान प्रदेश के मुख्यमंत्री, मंत्री और राज्यपाल जैसे गणमान्य व्यक्तियों ने ले लिया है। वह इस मेले, विशेषकर शोभायात्रा में जरूर शरीक होते हैं। बड़े-बूढ़ों के मुताबिक यह मेला उस समय भी आयोजित होता रहा, जब बघाट की राजधानी कोटी, जौणाजी और बोच हुआ करती थी। बाद में बघाट की राजधानी सोलन बनने पर इस मेले को और व्यापक स्तर पर आयोजित किया जाने लगा।
     सन 1972 में सोलन जिला बनने के बाद इस मेले के साथ ‘ग्रीष्मोत्सव’ भी जोड़ दिया गया। इसमें हर शाम को देश भर से आए सांस्कृतिक दल, फिल्मी हस्तियां, कव्वाल वगैरा अपने कार्यक्रम प्रस्तुत करते हैं। कुछ वर्ष पहले इस मेले की ऐतिहासिक महत्ता को समझते हुए इसे भी राज्यस्तरीय मेले का दर्जा दे दिया है। कुश्तियां पुराने समय से ही इस मेले का मुख्य आर्कषण रही हैं। मेला में इस बार भी दो दिन दंगल का विशेष आयोजन रखा गया है। यहां किंगकांग, गामा, गुंगा, हरबंससिंह, घसीटा, किक्कर व कल्लू जैसे नामी पहलवानों ने सोलन की माटी को छुआ है। अब तो इसमें महिला पहलवान भी आती हैं।
     प्राचीन ठोडा (तीरंदाजी) मेले के मुख्य आकर्षणों में से एक है। इसके अतिरिक्त कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। आज सोलन नगर हिमाचल का एक स्वावलंबी नगर बन गया है। यहां पिछले वर्षों में व्यवसायिक गतिविधियां काफी तीव्रगति से विकसित हुई हैं। सोलन जिला तो आज देश भर में एक विकसित औद्योगिक जिला में गिना जाता है। जिला में बद्दी, बरोटीवाला, नालागढ़, परवाणू सोलन में औद्योगिक ईकाइयों का जल बिछ गया है।
     जिला के विकास के साथ ही सोलन नगर में भी व्यवसायिक संस्थान और दुकानें तीव्र गति से बढ़ रही है। साथ ही व्यवसाय में काफी तीव्र प्रतिस्पर्धा आ गई है। सड़कों के किराने दुकानों में जो प्रगति हुई है वहीं मल्टी प्लैक्स शापिंग मॉल भी सोलन नगर में अच्छा व्यवसाय कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि सोलन एक अच्छा शापिंग सेंटर बन गया है। अब यहां हर चीज के लिए चंडीगढ़ या आसपास के बड़े नगरों में जाने की जरूरत नहीं रही है। कभी एक जमाना था जब सोलन नगर की जरूरतों को पूरा करने के लिए लोगों को खरीदारी के लिए चंडीगढ़ या अंबाला का रुख करना पड़ता था। मां शूलिनी के इस नगर ने आने परिवर्तन देखें हैं लोग कहते हैं कि यह मां शूलिनी का ही प्रताप है जो आज नगर बहुत आगे निकल गया है।

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