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सुप्रीम कोर्ट ने नया संकट खड़ा कर
दिया
राज्यपालों के लिए समय सीमा तय नहीं की जा
सकती...
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के
बाद राज्य सरकारों को लेकर नया संवैधानिक संकट खड़ा हो गया है। अब विधानसभा
द्वारा पास बिलों को राज्यपाल जब तक चाहें तब तक रोककर रख सकते हैं। हलांकि
विधानसभा का कार्यकाल मात्र पांच वर्ष का है और सुप्रीम कोर्ट के नए फैसले में
कहा गया है कि बिलों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा सकती।
राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए बिल मंजूरी की डेडलाइन तय करने वाली याचिकाओं पर
फैसला सुनाते कहा कि हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास विधानसभाओं से पास
बिलों (विधेयकों) पर रोक लगाने की पूरी पावर है। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि
गवर्नर्स के पास तीन रास्ते हैं। या तो बिल को मंजूरी दें या बिलों को दोबारा
विचार के लिए भेजें या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजें। हालांकि इसके साथ ही
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिलों की मंजूरी के लिए कोई समय सीमा तय नहीं की जा
सकती।
हास्यस्पद बात यह सामने आई है कि सुप्रीम कोर्ट कह रहा है कि अगर देरी होगी, तो
हम दखल दे सकते हैं। जबकि सुनवाई इसी बात पर चल रही थी कि राज्यपाल राज्यों के
बिलों को पास करने में अनावश्यक देरी कर रहे हैं। यह मामला तमिलनाडु गवर्नर और
राज्य सरकार के बीच हुए विवाद से उठा था। जहां गवर्नर ने राज्य सरकार के बिल
रोककर रखे थे। सुप्रीम कोर्ट ने आठ अप्रैल को आदेश दिया कि राज्यपाल के पास कोई
वीटो पावर नहीं है। इसी फैसले में कहा था कि राज्यपाल की ओर से भेजे गए बिल पर
राष्ट्रपति को तीन महीने के भीतर फैसला लेना होगा। यह ऑर्डर 11 अप्रैल 2025 को
आया था।
इसके बाद राष्ट्रपति ने मामले में सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी और 14 सवाल पूछे
थे। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में बिलकुल शांत है कि राष्ट्रपति को अपनी शपथ में
भारत के लोगों से किए वायदे को कैसे पूरा करना चाहिए। इस मामले में आठ महीने से
सुनवाई चल रही थी। सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से
कहा कि राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने के लिए
राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की जा सकती। इस
फैसले ने लोकतंत्र को पूरी तरह ध्वस्त करके रख दिया है। अब राज्यपाल पूरे पांच
साल तक किसी बिल को रोके रखे तो विधानसभाओं का संवैधानक अस्तित्व ही खत्म हो
जाएगा।
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