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गांव में बिजली का बल्व जला तो झूम उठे लोग
कुल्लू में ही करीब 20 गांव बिजली से अछूते...
निजी संवाददाता
शिमला
: क्या कोई आज के मोबाइल और सोलर युग में सोच सकता है कि भारत
में ऐसे गांव भी हैं जहां लोगों ने अभी तक अपने गांव में जलता हुआ बिजली का
बल्व नहीं देखा है। सच तो यह है कि हिमाचल में ही कई गांव ऐसे हैं जो आज भी
बिजली की रौशनी के लिए तरस रहे हैं। कुल्लू की सैंज घाटी का दुर्गम गांव
धारा-पोरिए में जब पिछले दिनों बिजली का बल्व जला तो उनकी खुशी का कोई
ठिकाना नहीं रहा।
यहां रात का मतलब सिर्फ अंधेरा था। तीन पीढ़ियां मोमबत्ती,
लालटेन और सूरज की रोशनी के सहारे जिंदगी चलाती रही। बिजली न होने से पूरा
गांव बच्चों की पढ़ाई से लेकर बुजुर्गों की सुरक्षा तक जूझता रहा। लेकिन अब
गांव की तस्वीर बदलेगी। अब धारा-पोरिए गांव में बिजली का पहला बल्ब जला है।
चार परिवारों वाला गांव बल्ब की रोशनी में नहाया तो बच्चों की तालियां दूर
तक गूंज उठी। लोगों के आंसू छलकते रहे और चेहरे पर ऐसी राहत थी जो शब्दों
में बयां नहीं की जा सकती है। इस गांव के लिए सड़क मार्ग आज भी नहीं है।
हैरानी इस बात की है कि कुल्लू जिले के 20 से अधिक गांव
अब भी अंधेरे में हैं और रात की रौशनी देखने के लिए तरस रहे हैं। चार
उपमंडलों कुल्लू, मनाली, बंजार और आनी में अब भी 20 से अधिक ऐसे गांव हैं
जिनमें अभी तक बिजली नहीं पहुंच पाई है। इन क्षेत्रों के ग्रामीणों को
डिजिटल युग में भी अंधेरे में जीवन यापन करना पड़ रहा है। सैंज घाटी के ही
दुर्गम गांव शाक्टी, मरौड़ और शुगाड़ तीन ऐसे गांव हैं जिनमें बिजली नहीं है।
इस बारे में जो सूचना अखबारों से मिली है उसके अनुसार
गांव में खड़ी चढ़ाई और पगडंडियों से होते हुए शैशर से करीब चार किलोमीटर दूर
बिजली के दस खंभे ढोकर लगाए गए। गांव में सिर्फ बिजली ही नहीं आई। मोबाइल
नेटवर्क और इंटरनेट भी पहली बार ही पहुंच गया। युवाओं ने वीडियो कॉल की
कोशिश की तो बुजुर्गों ने बस यही कहा अगर यह पहले आता, तो हमारी कई
मुश्किलें कम हो जाती। अब गांव बदलेगा और जिंदगी भी बदलेगी। बच्चे रात में
पढ़ सकेंगे। महिलाएं सुरक्षित तरीके से काम निपटा पाएंगी। बिना बिजली के हर
छोटा-बड़ा काम सूरज की गति पर निर्भर था। अगर कोई काम शाम तक रह जाए तो अगले
दिन का इंतजार करना पड़ता था। रातें सिर्फ अंधेरा, सावधानी और असुविधा लेकर
आती थीं। ग्रामीणों का कहना था कि देश मशीनों के युग में था और हम एक लौ
में जिंदगी ढूंढ रहे थे। किसी के बीमार होने पर बस भगवान ही मालिक था।
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सुप्रीम कोर्ट के फैसले से हिमाचल को झटका
कई बिल फंसे पड़े हैं राज्यपाल और राष्अ्रपति के पास...
निजी
संवाददाता
शिमला : सुप्रीम
कोर्ट के इस फैसले से हिमाचल प्रदेश भी अछूता नहीं रहा, जिसमें सुप्रीम कोर्ट
ने कह दिया कि वह राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा पास किए जाने वालों बिलों की
सीमा निर्धारित नहीं कर सकता है। हिमाचल सरकार की ओर से विधानसभा से पारित
करवाए गए पुराने 13 बिल अभी भी पारित होने का इंतजार कर रहे हैं।
कांग्रेस सरकार ने 14वीं विधानसभा में कुल 73 बिल पारित
किए हैं। इनमें कुछ राजभवन में अटके हैं, कुछ राष्ट्रपति के पास मंजूरी का
इंतजार है। राज्य सरकार की फ्लैगशिप योजना सुखाश्रय का बिल, अयोग्य विधायकों को
पेंशन रोकने का बिल राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए गया है। बाल विवाह रोकने और
इंडियन स्टॉप एक्ट में बदलाव करने के मामले भी भारत सरकार को गए हैं। बागबानी
और कृषि विश्वविद्यालय में कुलपति की नियुक्ति मामले में राज्यपाल के रोल को
सरकार बदलना चाहती है। ऐसे ही बिल अभी कानून नहीं बन सके हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद अब राज्यपाल और राष्ट्रपति
के विवेक पर निर्भर करता है कि वह हिमाचल विधानसभा में पारित बिलों को मंजूरी
देते हैं या अपने पास लटकाए रखते हैं। इन बिलों को लेकर क्या राजनैतिक गुल
खिलते हैं यह समय बताएगा।
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सीजेआई बने जस्टिस सूर्यकांत
निजी संवाददाता
शिमला
:
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ
ली है और अपना काम शुरू कर दिया है। पिछले दिनों राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू
ने नई दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन में भारत के नए मुख्य न्यायाधीश
सूर्यकांत को पद की शपथ दिलाई।
जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल नौ फरवरी 2027 तक होगा। शपथ
लेने के बाद वह देश के लिए 53वें मुख्य न्यायाधीश बन गए हैं। उन्होंने
न्यायमूर्ति बीआर गवई का स्थान लिया है जो 23 नवंबर को सेवानिवृत हुए। इसके
बाद उन्होंने वहां मौजूद बहन और बड़े भाई के पैर छुए। इस अवसर पर
उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, लोकसभा अध्यक्ष
ओम बिरला, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, गृह मंत्री अमित शाह, कानून मंत्री
अर्जुन राम मेघवाल, भारी उद्योग और इस्पात आदि गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
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खाद्य आपूर्ति विभाग की अपनी ही जांच में 43 सैंपल फेल
विभाग का फिर वही रटारटाया जवाब...
निजी
संवाददाता
शिमला : हिमाचल
सरकार के डिपुओं में घटिया किस्म का राशन भेजा जाता है। यह बात किसी से छुपी
हुई नहीं है। अब तो विभिन्न डिपुओं से एकत्र किए गए सैंपलों में से 43 सैंपल
फेल पाए गए हैं। लोग वर्षों से सरकारी डिपुओं में मिलने वाले राशन की शिकायतें
विभाग से करते रहते हैं। विभाग की ओर से भी कड़ी कार्यवाही का रटारटाया जवाब मिल
जाता था।
पिछले दिनों न जाने कैसे खाद्य आपूति विभाग ने अप्रैल,
2025 से लेकर 17 अक्तूबर तक सात माह में प्रदेश के राशन डिपुओं और गोदामों से
करीब 1031 खाद्य पदार्थों के सैंपल ले लिए। जब इसकी रिपार्ट खाद्य आपूति विभाग
की लैब में जांच करने के बाद सामने आई तो विभिन्न खाद्य वस्तुओं के 43 सैंपल
फेल पाए गए। रिपार्ट में यह भी बताया गया है कि 978 सैंपल पास भी हुए जबकि दस
सैंपलों की जांच ही नहीं की गई। विभाग ने साढ़े पांच लाख 28,446 रुपए जुर्माने
के रूप में वसूल किए हैं। खाद्य आपूति विभाग के डिपुओं और राशन के गोदामों से
चावल के 122 सैंपल की जांच की गई और सात सैंपल फेल पाए गए हैं। इसके अलावा आटे
के 469 सैंपलों में 19 सैंपल की रिपोर्ट फेल पाई गई। चीनी के 59 सैंपलों में
तीन फेल पाए गए। रिफाइंड तेल के 36 और सरसों तेल के 33 सैंपल लिए, जिसमें सभी
तेल के सैंपल सही पाए गए। खाद्य आपूति विभाग की लैब में नमक के 65 सैंपल जांच
गए और चार सैंपल फेल पाए गए। उड़द की दाल के 68 सैंपलों में पांच सैंपल फेल हुए।
दाल चना के 74 सैंपल जांचे गए, जिसमें एक सैंपल फेल पाया गया। दाल मलका के 73
सैंपल जांचे गए, जिसमें चार सैंपल फेल हुए। काले चने और राज माह के दो-दो और
दलिया के तीन सैंपल जांच में सही पाए गए हैं।
सरकारी राशन में इतने अधिक सैंपल विभाग की खुद की जांच
में ही फेल पाए गए हैं। बावजूद इसके खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले
के विभाग का फिर वही कहना है कि खाद्य पदार्थों की गुणवता का पूरा ख्याल रखा जा
रहा है। खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता को लेकर किसी भी प्रकार का समझौता नहीं
किया जाएगा। लेकिन विभाग की ओर से यह सफाई नहीं दी गई कि 43 सैंपल फेल कैसे हो
गए। जबकि यह राशन उन लोगों में वितरित किया जाना था जो हर तरह से कमजोर वर्ग की
श्रेणी में आते हैं।
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