| 
    
    Home 
    Page | 
  
| 
    
     कार्तिक माह के 15वें दिन मनाई जाती है दीपावली देश भर में कई और कथाएं भी हैं दीपावली को लेकर दीपावली कार्तिक माह के 15वें दिन (अक्तूबर या नवम्बर माह) में मनाई जाती है। सर्व प्रचलित कथा रामायण के अनुसार यह त्योहार भगवान राम के 14 वर्ष के बनवास के बाद अपने राज्य अध्योध्या में वापस लौटने की स्मृति में मनाया जाता है। भारत के सभी त्योहारों में दीपावली सबसे सुन्दर त्योहार है और इसे प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है। दीपावली अथवा दीवाली, प्रकाश उत्सव है, जो सत्य की जीत व आघ्यात्मिक अज्ञान को दूर करने का प्रतीक है। शब्द ‘दीपावली’ का शाब्दिक अर्थ है दीपों (मिट्टी के दीप) की पंक्तियां। यह हिंदूओं का एक बहुत लोकप्रिय वार्षिक त्योहार है। इस दिन गलियां मिट्टी के दीपकों की पंक्तियों से प्रकाशित की जाती हैं तथा घरों को रंगों व मोमबत्तियों से सजाया जाता है। यह त्योहार नए वस्त्रों, दर्शनीय आतिशबाजी और परिवार व मित्रों के साथ विभिन्न प्रकार की मिठाइयों के साथ मनाया जाता है। चूंकि यह प्रकाश व आतिशबाजी, खुशी व आनन्दोत्सव दैव शक्तियों की बुराई पर विजय की सूचक है। भगवती लक्ष्मी (विष्णु की पत्नी), जो कि धन और समृद्धि की प्रतीक हैं, उन्हीं की इस दिन पूजा की जाती है। पश्चिमी बंगाल में यह त्योहार काली पूजा के रूप में मनाया जाता है। काली जो शिवजी की पत्नी हैं, की पूजा दीवाली के अवसर पर की जाती है। दीपावली पर्व भारत में अलग अलग परंपराओं के साथ भी मनाया जाता है। दक्षिण में, दीपावली त्यौहार अक्सर नरकासुर, जो असम का एक शक्तिशाली राजा था, और जिसने हजारों निवासियों को कैद कर लिया था, पर विजय की स्मृति में मनाया जाता है। ये श्रीकृष्ण भगवान ही थे जिन्होंने अंत में नरकासुर का दमन किया व कैदियों को स्वतंत्रता दिलाई। इस घटना की स्मृति में प्रायद्वीपीय भारत के लोग सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं, व कुमकुम अथवा हल्दी के तेल में मिलाकर नकली रक्त बनाते हैं। राक्षस के प्रतीक के रूप में एक कड़वे फल को अपने पैरों से कुचलकर वे विजयोल्लास के साथ रक्त को अपने मस्तक के अग्रभाग पर लगाते हैं। तब वे धर्म-विधि के साथ तैल स्नान करते हैं, स्वयं पर चन्दन का टीका लगाते हैं। मन्दिरों में पूजा के बाद फलों व मिठाइयों के साथ बड़े पैमाने पर परिवार का जलपान होता है। एक और कथा के अनुसार राजा बली के संबंध में दीवाली उत्सव की दक्षिण में एक और कथा है। हिंदू पुराणों के अनुसार, राजा बली एक दयालु दैत्यराज था। वह इतना शक्तिशाली था कि वह स्वर्ग के देवताओं व उनके राज्य के लिए खतरा बन गया। बली की ताकत को मंद करने के लिए विष्णु एक बौने भिक्षुक ब्राह्मण के रूप में आए। ब्राह्मण ने चतुराई से राजा से तीन पग के बराबर भूमि मांगी। राजा ने खुशी के साथ यह दान दे दिया। बली को कपट से फंसाने के बाद, विष्णु ने स्वयं को प्रभु के स्वरूप में पूर्ण वैभव के साथ प्रकट कर दिया। उसने अपने पहले पग से स्वर्ग व दूसरे पग से पृथ्वी को नाप लिया। यह जानकर कि उसका मुकाबला शक्तिशाली विष्णु के साथ है, बली ने आत्म समर्पण कर दिया व अपना शीश अर्पित करते हुए विष्णु को अपना पग उस पर रखने के लिए आमंत्रित किया। विष्णु ने अपने पग से उसे अधोलोक में धकेल दिया। इसके बदले में विष्णु ने, समाज के निम्न वर्ग के अंधकार को दूर करने के लिए उसे ज्ञान का दीपक प्रदान किया। उसने, उसे यह आशीर्वाद भी दिया कि वह वर्ष में एक बार अपनी जनता के पास अपने एक दीपक से लाखों दीपक जलाने के लिए आएगा ताकि दीवाली की अंधेरों रात को, अज्ञान, लोभ, ईर्ष्या, कामना, क्रोध, अहंकार और आलस्य के अंधकार को दूर किया जा सके, तथा ज्ञान, विवेक और मित्रता की चमक लाई जा सके। आज भी प्रत्येक वर्ष दीवाली के दिन एक दीपक से दूसरा जलाया जाता है, और बिना हवा की रात में स्थिर जलने वाली लौ की भांति संसार को शांति व भाइचारे का संदेश देती है।  | 
  
| 
    
    Home 
    Page |