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एक बार ईवीएम और एक बार बैलेट पेपर से चुनाव हों तो

ईवीएम को लेकर सड़कों में उतरने की तैयारी...

विशेष संवाददाता

     भारत में एक बार चुनाव ईवीएम से और एक बार बैलेट पेपर से करवाने का नियम बना दिया जाए तो शायद देश में छिड़ी तमाम चुनावी बहस पर एकदम विराम लग सकता है। हरियाणा के बाद महाराष्ट्र चुनाव के बाद ईवीएम की लड़ाई सड़कों पर आने वाली है। चुनाव आयोग को छह माह में चुनाव करवाने की संवैधानिक ताकत संविधान निर्माताओं ने पहले से ही दे रखी है। इसलिए चुनाव आयोग भी यह नहीं कह सकेगा कि वह बैलेट पेपर से छह माह में भी चुनाव करवाने में सक्षम नहीं है। हरियाणा के बाद महाराष्ट्र चुनाव के परिणाम के बाद ईवीएम को लेकर फिर से नए तरीके का बवाल खड़ा हो गया है।
     अब एक ओर भारत सरकार और चुनाव आयोग है जो पैरवी करती है कि ईवीएम से चुनाव पूरी तरह से निष्पक्ष होते हैं दूसरी ओर विपक्षी दल कहते हैं कि सरकार ईवीएम की मदद से ही जहां चाहती है वहां हारा हुआ चुनाव जीत ले जाती है। चुनाव आयोग की भूमिका लगातार संदेहस्पद बनी हुई है। क्योंकि वह उन प्रश्नों के जवाब नहीं दे रहा है जो विपक्षी दल उठाते रहते हैं। इसका कोई नया फार्मूला सोचा जाना जरूरी हो गया है। अगर स्वस्थ लोकतंत्र के प्रति भारत के लोगों की निष्ठा को बनाए रखना है, तो।
     भाजपा जब विपक्ष में थी तो ईवीएम पर खूब शोर मचाती रहती थी। अब कांग्रेस या उससे जुड़े दल ईवीएम में हेराफेरी के आरोप लगाते हैं। कहा जा सकता है कि जब कोई दल सत्ता में पहुंच जाता है तो वह ईवीएम का पक्षधर हो जाता है और जब विपक्ष में रहता है तो ईवीएम का विरोधी बन जाता है। लगता है आगे भी यही क्रम चलता रहेगा। आखिर किसी न किसी स्तर पर तो कोई सार्थक निर्णय भारत के लोगों को सरकार पर दबाव बनाकर लेना ही पड़ेगा।
     यदि पांच साल बाद चुनाव बैलेट पेपर से और फिर उसके अगले पांच साल बाद चुनाव ईवीएम से करवा दिए जाएं तो शायद सत्तापक्ष और विपक्ष सहित सभी की बातों का सम्मान बरकरार रखा जा सकेगा। वैसे तो चुनाव प्रणाली इतनी सशक्त और लोकतांत्रिक होनी चाहिए कि उस पर कोई प्रश्नचिन्ह ही न लगा सके। लेकिन भारत में तो हर चुनाव में चुनाव प्रणाली प्रश्नों के घेरे में आ रही है। चुनाव आयोग लोगों की ओर से उठाए जाने वाले प्रश्नों का जवाब ही नहीं दे रहा है तो यह व्यवस्था बदली जानी जरूरी हो गई है। यदि एक बार चुनाव ईवीएम से एक बार बैलेटपेपर से करवाने पर भी भारत सरकार या चुनाव आयोग तैयार नहीं होता है तो फिर यह मान लिया जाएगा कि सरकार के मन में कोई खोट है। साथ ही साथ यह दावे भी खत्म हो जाएंगे कि बैलेट पेपर से चुनाव करवाकर देख लो। वैसे भी ईवीएम या बैलेट पेपर से चुनाव करवाने में कोई संवैधानिक रोक नहीं है।
     इस समय भारत के लोगों के सामने यह प्रश्न खड़ा हो गया है कि भारतीय चुनाव प्रणाली पर विश्वास किया जाए या नहीं। विश्व भर में जब यह बात जाती है कि भारत सरकार हेराफेरी करके चुनी जा रही है तो उसकी इज्ज़त दो कोड़ी की नहीं बचती है। बस यह कह दिया जाता है कि विरोध करने वाले झूठ बोल रहे हैं, पर उस झूठ का कोई समाधान नहीं निकाला जाता।
     देश में बहस शुरू होनी चाहिए कि एक-एक बार ईवीएम और बैलेट से चुनाव हो जाएं तो क्या एतराज है। हालात तो इस तरफ जा रहे हैं कि सरकार ही हम भारत के लोगों की बात पर कोई तव्वजो नहीं दे रही है। जबकि हमारा पूरा संघीय ढांचा ‘हम भारत के लोग’ पर ही खड़ा है। या सभी को यह मान लेना चाहिए कि अब भारत में लोकतंत्र बचा नहीं है।

 
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