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इस बार तो दुकानदार ग्राहकों देखने को तरस गए

     नोटबंदी के बाद से ही देश भर के व्यापार में ग्रहण लगा हुआ है लेकिन इस बार तो आलम यह बना हुआ था कि ग्राहक देखने को दुकानदार तरस गए। दीपावली शॉपिंग जैसी बातें तो अब बीते हुए युग की बातें लगने लगी हैं। व्यापारियों को अब यह समझ नहीं आ रहा है कि वह अपने कारोबार को जिंदा रखने के लिए क्या युक्ति लगाएं। जब ग्राहक की ही कमर टूटी हुई है तो वह त्योहारों पर खुलकर खर्चा कैसे कर सकता है। बाजार में जो जो थोड़े बहुत ग्राहक भी थे वह ऑन लाइन शापिंग ने घेर रखे हैं।
     बाजार में मंदी का सबसे बुरा असर यह देखने को मिल रहा है कि लोग चुनिंदा दुकानों से ही खरीददारी कर रहे हैं। वह भी दुकानदारों के सही शॉपिंग करने के नजरिए के कारण। पहले भीड़ भीड़ वाली शॉपिंग में छोटे दुकानदार भी अपने गुजारे लायक दुकानदारी कर लेते थे पर इस बार तो गुजारे लायक दुकानदारी भी देखने को नहीं मिल रही है। यह हाल सिर्फ छोटे व्यापारियों का ही नहीं है बड़े व्यापारियों ने तो खूब विज्ञापन देकर ग्राहकों को अपनी ओर आकर्षित करके अपने व्यापार को बचाने का प्रयास किया। कुछ को उनके इस प्रयास में अच्छी सफलता भी मिली। लेकिन इससे ग्राहक उन्हीं दुकानों तक सिमट कर रह गया जिन्होंने इस दीपावली के त्योहार में विज्ञापनों का खूब शोर किया।
     अधिकतर दुकानदारों का यह भी मानना है कि यदि वह ग्राहकों को विज्ञापन के माध्यम से अपनी ओर आकर्षित न करें तो उनको तो ग्राहकों के लाले पड़ जाएंगे। प्रतिस्पर्धा के इस युग में बचने के लिए विज्ञापन ही उनके लिए एक नया सहारा बना है। बाजार में जब मंदी का दौर चलता है तो ग्राहकों के लिए छीना-झर्प्टी तो प्रत्येक दुकानदार को करनी पड़ती है। इसके लिए वह विज्ञापन का सहारा लेकर ही अपने कारोबार को बचाते हैं।
     स्थानीय दुकानदारों का यह भी मानना है कि आर्थिक मंदी सिर्फ कुछ गांवों और शहरों तक ही सीमित नहीं है। यह मंदी का दौर पूरे देश को अपनी चपेट में लिए हुए है। उद्योग धंधे बंद होने के कगार पर खड़े हैं और जो चल भी रहे हैं वह इतना कम उत्पादन कर रहे हैं कि माल खरीदना भी मुश्किल हो गया है। वहां भी अब माल उठाने के लिए बड़े कारोबारियों ने बड़ी शर्तें लगा दी हैं। उनका कहना है कि कम माल बेचने से उनका घाटा और भी बढ़ जाता है।

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