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लंगड़ी शिक्षा व्‍यवस्‍था को घसीट रही सरकार

लेक्‍चरर पढ़ाएंगे छटी से 12वीं तक के बच्‍चे...

विशेष संवाददाता

     शिमला : हिमाचल प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल सिर्फ मौजूदा सरकार ने ही नहीं किया है। बल्कि पूर्व सरकारों की गलत शिक्षा नीति का भुगतान अब पूरे प्रदेश को करना पड़ रहा है। अब मौजूदा लंगड़ी शिक्षा व्यवस्था को घसीटने के लिए सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार ने नया तुगलकी फरमान जारी कर दिया है कि शिक्षा विभाग में नियुक्त स्कूल प्रवक्ताओं को अब छठी से दसवीं तक की कक्षाएं भी पढ़ानी होंगी।
     देश भर में शिक्षा का अधिकार कानून को बने भी अब लगभग दो दशक का समय बीत चुका है और हिमाचल की सरकार इस दौरान भांग खाकर बैठी रही। प्रदेश सरकार पिछले 20 वर्षों में एक मान्यता प्राप्त एनटीटी संस्थान नहीं खोल पाई, जो एनसीटीई से मान्यता प्राप्त हो। अब सरकार को प्री-प्राईमरी शिक्षकों की भर्ती करनी अनिवार्य है तो सरकार आएंबांए बगले झांक रही है, उल्टी सीधी बयानबाजियां कर रही है।
     प्राइमरी में पढ़ने वाले बच्चों के लिए पूर्व सरकारों ने नया गैर कानूनी शब्द ‘अगेन्स्ट जेबीटी’ खोज निकाला और बीएड शिक्षकों को जेबीटी शिक्षकों की जगह भर्ती कर डाला। जबकि जेबीटी टीचर 5वीं और बी.एड. टीचर दसवीं कक्षा तक के बच्चों को पढ़ाने के लिए रखे जाते हैं। जमा दो के बच्चों के लिए स्कूल लेक्चरर की नियुक्ति प्रदेश सरकार ने की। सरकार ने अपने उदंड दिमाग से बी.एड. टीचर जो प्राइमरी कक्षाओं को पढ़ा रहे थे उन्हें ट्रेड ग्रेजुएट टीचर (टीजीटी) बना दिया। इसी प्रकार जो पोस्ट ग्रेजुएट टीचर टीजीटी लगाए गए थे उन्हें स्कूल लेक्चरर बना दिया। इन्हें प्रमोशन का नाम भी दे दिया, जबकि उनकी नियुक्तियां ही शुरू में गलत की गई थी और अपनी गलती को ढकने के लिए सरकारें उल्टे फैसले लेती रही। विद्या उपासक, पीटीए जैसे अध्यापक भर्ती करके तो सरकारों ने जहां भारत के संविधान की धज्जियां उड़ा दी वहां शिक्षा के अधिकार कानून की ऐसी की तैसी कर दी।
     अब मौजूदा सरकार के गले में जब पूरा शिक्षा तंत्र बुरी तरह फंस गया है तो उसने भी सोने पे सुहागा कर दिया है। सरकार ने कहा है कि लेक्चरर (स्कूल न्यू) को कक्षा छह से 12 तक पढ़ाने की जिम्मेदारी दी जाए। प्रदेश स्कूल शिक्षा निदेशालय ने सभी सरकारी वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों को ये स्पष्ट निर्देश जारी किए हैं। अब प्रदेश का शिक्षा मंत्रालय यह बात स्पष्ट नहीं कर पा रहा है कि एनटीटी, जेबीटी, ईटीटी, बी.एड. की डिग्री डिप्लोमे शिक्षा प्रणाली में क्या मायने रखते हैं। जब स्कूल लेक्चरर ही छठी से लेकर 12वीं तक के बच्चों को पढ़ाने की पात्रता रखते हैं। तो प्रदेश में प्राइमरी से ऊपर की शिक्षा लेक्चररों से ही दिलवाई जानी चाहिए। बाकियों की तो भर्ती ही नहीं होनी चाहिए। पर क्या इसे गुणवत्ता शिक्षा के संवैधानिक प्रावधान के समक्ष खरा माना जा सकता है।
     हिमाचल प्रदेश स्कूल प्रवक्ता संघ का कहना है कि स्कूल लेक्चरर एक विषय वर्षों से पढ़ा रहे हैं और उनकी नियुक्ति भी मात्र एक विषय के लिए हुई है। इस तरह से उन्हें छठी से दसवीं की कक्षाएं भी देना दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश में जिस प्रकार की शिक्षा व्यवस्था कायम हो चुकी है उसे गुणवत्ता वाली शिक्षा तो नहीं कहा जा सकता है, हां लंगड़ी शिक्षा वयवस्था कह सकते हैं।

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