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बेचारा उप राष्‍ट्रपति

संजय हिंदवान

     शिमला : अभी तक माना जाता था कि उप-राष्ट्रपति बनना बड़े गौरव की बात होती है। लेकिन पिछले दिनों उप-राष्ट्रपति पद पर आसीन जगदीप धनकड़ के साथ जो हुआ, उसे देखकर अब उप-राष्ट्रपति को बेचारा न कहा जाए तो और क्या कहा जाए। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिला में जबसे वह पूर्व मुख्य न्यायधीश टी.एस. ठाकुर से मिलकर गए तब से उन पर मुसीबतों का पहाड़ टूटना शुरू हो गया था।
     अब नया उप-राष्ट्रपति नौ सितंबर को आने वाला है। खबरों के मुताबिक मौनसून सत्र के पहले दिन ही धनखड़ पर दबाव डाला गया कि वह मोदी सरकार के हिसाब से कार्य नहीं कर रहे हैं इसलिए वह पद को छोड़कर चले जाएं। लोग उनके आचरण को इस बात से भी जोड़कर देख रहे हैं कि कहीं जस्टिस ठाकुर से मिलने के बाद उनका हृदय परिवर्तन तो नहीं हो गया था। यह वही जस्टिस ठाकुर हैं जिन्होंने केन्द्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर के सुप्रीम कोर्ट में पसीने छुड़ा दिए थे।
बहस देश भर में यह भी छिड़ी हुई है कि यदि धनखड़ सरकार के कहने पर अपना इस्तीफा नहीं देते तो ज्यादा से ज्यादा क्या हो जाता, उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाया जाता ताकि वह तुरंत कुर्सी छोड़ दें। यदि वह इस्तीफा न देते तो अविश्वास प्रस्ताव के लिए सत्तारूढ़ पक्ष को तुरंत राज्यसभा का सभापति बनाना पड़ जाता जो अविश्वास प्रस्ताव की अध्यक्षता करता।
     यह भी कह सकते हैं कि यदि धनखड़ इस्तीफा नहीं देते तो पूरा सत्तारूढ़ दल मुसीबत में आ जाता। क्योंकि आनन फानन में सभी कार्यवाही को अंजाम दिया जाना काफी मुश्किल था। यहां यह भी कहा जा सकता है कि भाजपा और आरएसएस के बीच चल रहे शीत युद्ध का लाभ भी शायद धनखड़ की कुर्सी को बचा लेता। विपक्ष तो निश्चित रूप से उनके साथ खड़ा हो ही जाता, हो सकता है कि एनडीए के कुछ घटक दल भी धनखड़ के पक्ष में आ जाते।
     हलांकि पूर्व उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ को काफी काबिल लोगों में माना जाता था जब जस्टिस ठाकुर सुप्रीम कोर्ट में थे तो धनखड़ सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते थे। वह जाते जाते अपनी काबिलियत को कानून के दांव पेच में साबित नहीं कर पाए। उन्होंने ऐसा क्यों किया इसके पीछे किसी बड़े रहस्य की आहट सुनाई देती है, जो कभी भी बाहर आ सकती है।

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