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    30 दिन की जेल 
    में चौपट हो जाएगा राजनैतिक भविष्य 
    
    
    अमित शाह ने लोकसभा में किया बिल 
    पेश... 
    
    
        
    
    
    
     भाजपा की केन्द्र में विराजमान सरकार ने देश भर के 
    जितने भी विरोधी पक्ष के नेताओं को जेल भेजा उनमें से लगभग सभी नेता बाइज्ज़त बरी 
    हो गए हैं। इसका अल्पकालीन लाभ तो भाजपा ने उठा लिया लेकिन वह विरोधी पार्टी के 
    नेताओं का स्थाई इलाज करने के मूड़ में दिख रही है। इसीलिए हाल ही में संपन्न 
    हुए मानसून सत्र के अंतिम दिन भाजपा और उसके सहयोगियों ने एक नया बिल लोकसभा 
    में पेश कर दिया। जिसमें यह प्रावधान रखा गया है कि प्रधानमंत्री से लेकर 
    मुख्यमंत्री या किसी भी मंत्री को गिरफ्तारी या 30 दिन तक हिरासत में रहने के 
    बाद अपना पद छोड़ना पड़ेगा। 
         इस बिल में यह शर्त भी है कि जिस अपराध के लिए हिरासत या गिरफ्तारी हुई है, उसमें 
    पांच साल या ज्यादा की सजा का प्रावधान होना चाहिए। गृहमंत्री अमित शाह ने 
    लोकसभा में इससे संबंधित तीन बिल पेश किए। विपक्षी पार्टियों ने तीनों विधेयकों 
    के खिलाफ लोकसभा में जमकर हंगामा भी किया। विपक्ष के सांसदों ने तीनों बिलों को 
    वापस लेने की मांग करते हुए कुछ सांसदों ने गृहमंत्री अमित शाह के सामने बिल को 
    फाड़ते हुए कागज के गोले फेंके बनाकर उन पर फेंके।
    कांग्रेस, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और सपा ने बिलों को न्याय विरोधी 
    और संविधान विरोधी बताकर अपना विरोध दर्ज करवाया। 
         गृहमंत्री अमित शाह ने तीनों बिलों को संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने 
    की बात कही। यानि अब यह बिल अगले शीतकालीन सत्र में सदन में लाया जा सकता है। 
    ये तीनों बिल अलग-अलग इसलिए लाए गए हैं क्योंकि केंद्र सरकार, राज्य सरकार और 
    केंद्र शासित राज्यों के नेताओं के लिए अलग-अलग प्रावधान इस बिल में किए गए 
    हैं। पहला बिल 130वां संविधान संशोधन बिल-2025 है जो गृहमंत्री अमित शाह द्वारा 
    संसद में पेश किए जाने वाले 130वें संविधान संशोधन विधेयक-2025 में प्रस्तावित 
    किया गया है कि प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री और मंत्री तक, अगर कोई भी 
    गिरफ्तार होता है और लगातार 30 दिनों से ज्यादा समय तक न्यायिक हिरासत में जेल 
    में रहता है तो उसे 31वें दिन हटना होगा। 
         अब यदि केन्द्र की मोदी सरकार शीतकालीन सत्र तक बची रह जाती है तो यही बिल देश 
    भर में हंगामें का कारण होगा। पिछले दिनों जिस प्रकार दिल्ली के मुख्यमंत्री 
    सहित अन्य टॉप लीडरशिप को जेल में बंद रखा और बाद में वह बाइज्ज़त बरी हो गए इससे 
    केन्द्र सरकार की जांच एजंसियों की बहुत किरकिरी देश भर में हुई है। हलांकि इसमें 
    भाजपा को अल्पकालीन लाभ तो मिल गया और वह दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने में 
    सफल हो गई। ऐसा ही कुछ हाल झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के साथ भी हुआ। 
         इसके अतिरिक्त और भी बहुत से उदाहरण मौजूद हैं जहां बड़े बड़े नेता अंततः निर्दोष 
    साबित हो गए या कुछ भाजपा में शामिल होकर पाक साफ हो गए। कहते हैं कि विरोधी 
    पार्टी के नेताओं का स्थाई रूप से पत्ता काटने के लिए 30 दिन की हिरासत वाला 
    बिल कानून बनाने के लिए लाया जा रहा है। यह भी शंका व्यक्त की जा रही है कि जो 
    नेता आज भी मोदी सरकार को समर्थन दिए हुए हैं उनको काबू में रखने के लिए यह बिल 
    लोकसभा में पेश किया गया है। 
    कुल मिलाकर तरह तरह की बातें राजनैतिक गलियारों में चल रही हैं। कुछ विश्लेषकों 
    का यह भी कहना है कि उप-राष्ट्रपति का चुनाव जीतने के लिए यह पैंतरा खेला गया 
    है। इस बिल का भविष्य क्या होगा यह तो भविष्य के गर्भ में है। लेकिन इस बिल का 
    खौफ हर राजनैतिक बहस में शामिल हो गया है। 
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