अनमोल रत्न चला
गया
विशेष संवाददाता
शिमला : देश का अनमोल रत्न इस दुनियां को अलविदा कहकर चला गया। आजादी के आंदोलन
से लेकर आज तक टाटा समूह ने जहां जमकर व्यापार किया वहीं जमकर देश सेवा भी की
है। पूरा देश आज इस समाजसेवी के निधन पर मौन है।
देश के अनमोल रत्न और जाने-माने उद्योगपति रतन टाटा का मुंबई के वर्ली स्थित
श्मशान घाट में पूरे राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। उन्होंने 86
वर्ष की उम्र में मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में अंतिम सांस ली थी। अंतिम
संस्कार के पहले उन्हें गार्ड आॅफ आॅनर दिया गया। कोलाबा स्थित टाटा के आवास से
लेकर एनसीपीए (राष्ट्रीय प्रदर्शन कला संस्थान) और फिर श्मशान घाट तक लोगों की
भारी भीड़ उनके अंतिम दर्शन के लिए उमड़ी और फिर वर्ली स्थित श्मशान घाट में
उन्हें पंचतत्व में विलीन किया गया। शवदाह गृह में मौजूद एक धर्म गुरु ने बताया
कि अंतिम संस्कार पारसी परंपरा के अनुसार किया गया।
उन्होंने बताया कि अंतिम संस्कार के बाद दिवंगत उद्योगपति के दक्षिण मुंबई के
कोलाबा स्थित बंगले में तीन दिन तक अनुष्ठान किए जाएंगे। रतन टाटा के निधन के
बाद उनका नाम देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के लिए प्रस्तावित कर दिया गया
है। महाराष्ट्र की सरकार ने यह फैसला लिया है। उनके निधन पर महाराष्ट्र, झारखंड
और गुजरात में एक दिन राजकीय शोक रखा गया। महाराष्ट्र और झारखंड व गुजरात सरकार
ने रतन टाटा के निधन पर एक दिन के राजकीय शोक का ऐलान किया था। जिसके चलते इन
राज्य के सभी सरकारी कार्यालयों पर राष्ट्रीय ध्वज आधा झुका रहा।
उनके उम्दा व्यापारी होने का सबसे बड़ा सबूत यही है कि अम्बानी-अडानी भी तमाम
प्रयास के बावजूद उन्हें पीछे नहीं छोड़ पाए। उनके समाज सेवी होने का सबूत यह है
कि वह अपनी कमाई का सबसे बड़ा हिस्सा चैरेटी और सामाजिक कार्यों पर खर्च किया
करते थे। कहा जा सकता है कि वह खानदानी अच्छे उद्योगपति और समाजसेवक थे। उनके
टाटा समूह के पूर्वजों ने आजादी के आंदोलन में जो महत्वपूर्ण योगदान दिया था
स्व. रतन टाटा ने उसी परंपरा का आगे बढ़ाया। हाल ही के वर्षों में करोना काल में
उन्होंने दिल खोल कर भारत सरकार को चंदा दिया और साधारण जनमानस को राहत देने के
लिए भी अलग से करोड़ों रुपए का चंदा दिया।
अब रतन टाटा इस दुनियां में नहीं रहे हैं और लोग उनकी आवाज को अब कभी नहीं सुन
पाएंगे। टाटा समूह आगे किन हाथों में रहेगा वह लोगों की किस प्रकार मदद करेगा,
करेगा भी या नहीं यही सवाल लोगों के मस्तिष्क में घूम रहे हैं। यह बात भी जग
जाहिर है कि उद्योग समूह सरकार को भारी चंदा देते हैं। टाटा समूह भी उसी प्रकार
चंदा सरकार को देगा। लेकिन जिस समाजसेवी को देश ने खो दिया है वह फिर टाटा समूह
से निकलेगा भी या नहीं यह बात भविष्य के गर्भ में छुपी है। यह भी तय है कि स्व.
रतन टाटा को हमेशा याद रखा जाएगा।
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