सुप्रीम कोर्ट से
मिली पत्रकार को राहत
खिलाफ लिखने पर पत्रकार पर केस
नहीं चलना चाहिए...
विशेष संवाददाता
शिमला
: सुप्रीम कोर्ट ने एक पत्रकार को गिरफ्तारी से राहत प्रदान करते हुए कहा
है कि एक पत्रकार की रचना को सरकार की आलोचना के रूप में देखा जाता है। देश में
लेखक के खिलाफ आपराधिक केस दर्ज नहीं चलाया जाना चाहिए। पत्रकारों के अधिकार
संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) के तहत सुरक्षित हैं। फिर भी आजकल सरकार के
खिलाफ लेख लिखे जाने पर पत्रकारों को गिरफ्तार करने का एक सिलसिला शुरू हो गया
है।
केन्द्र ही नहीं राज्य सरकारों ने भी पत्रकारों को इस प्रकार के दबाव में लेना
शुरू किया हुआ है।
पत्रकारों को सरकार के खिलाफ लिखने पर सरकारें उनकी आर्थिक हालात पर तो प्रहार
करती ही हैं। अब तो पत्रकारों को गिरफ्तार करने तक बात चली गई है। शायद सरकार
में बैठे लोगों की मानसिकता यह हो गई है कि पत्रकार को गिरफ्तार करके उसे कड़ा
सबक सिखाया जाए और अगर वह कुछ दिन जेल में रहकर छूट जाए तो उसके लिए इतनी
प्रताड़ना भी काफी है।
कुछ इसी प्रकार का मामला पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट के सामने भी आया जब उत्तर
प्रदेश सरकार पर जातिगत पक्षपात का आरोप लगाने वाले एक लेख के बाद गिरफ्तारी की
आशंका जताने वाले लखनऊ के पत्रकार अभिषेक उपाध्याय को सुप्रीम कोर्ट ने
गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की। न्यायमूर्ति हृषिकेश
रॉय और न्यायमूर्ति
एसवीएन भट्टी की पीठ ने कहा कि सिर्फ इसलिए कि एक पत्रकार ने सरकार की आलोचना
की है, लेखक के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया जाना चाहिए।
पत्रकार उपाध्याय द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने
उत्तर प्रदेश सरकार से चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। पीठ ने
कहा कि लोकतांत्रिक देशों में अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता का सम्मान
किया जाता है। अभिषेक उपाध्याय के वकील अनुप प्रकाश ने अदालत को बताया कि उनके
मुवक्किल द्वारा यादव राज बनाम ठाकुर राज शीर्षक से लिखे गए लेख के बाद उन्हें
धमकियों और अपशब्दों का सामना करना पड़ा है।
यह धमकियां और अपशब्द यह बताने के लिए काफी हैं कि पत्रकारों के खिलाफ उनका
कैसा रवैया रहता है। सरकार के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों के सरकारी विज्ञापनों
को रोक दिया जाता है। पत्रकारों के खिलाफ छोटे छोटे मामलों को लेकर उन्हें
प्रताड़ित किया जाता है। कभी उनके वाहनों का चालान कटवा दिया जाता है। कभी झूठे
केसों में फंसा लिया जाता है। गिरफ्तारी को रोकने के लिए तो पत्रकार कोर्ट से
राहत प्राप्त कर सकते हैं लेकिन अन्य नुक्सान उन्हें स्वयं ही झेलने पड़ते हैं
क्योंकि सरकार में बैठे लोगों के दिमाग संवैधानिक दृष्टि से बहुत छोटे हो चले
हैं।
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