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    स्कूली बच्चों को चिकन पनीर तो 
    मिलेगा, कोच नहीं मिलेगा 
    
    टूर्नामेंट में साधारण टीचर भेज दिए 
    जाते हैं... 
    
    निजी संवाददाता 
    
    
       
    
    
     शिमला
    : हिमाचल प्रदेश में जहां एक ओर स्कूली खिलाड़ियों की डाइट में चिकन और 
    पनीर शामिल किया जा रहा है वहीं दूसरी ओर हैरानी की बात यह है कि अधिकतर 
    स्कूलों में विद्यार्थियों की खेल गतिविधियां चलाने वाले कोच या शिक्षक ही नहीं 
    हैं। 
        
    हिमाचल में सरकारी स्कूलों के छात्र एवं छात्रा खिलाड़ियों की डाइट में अब चिकन 
    और पनीर शामिल हो गया है। हिमाचल सरकार ने डाइट मनी को 120 रुपए प्रतिदिन प्रति 
    छात्र से बढ़कर 250 रुपए प्रतिदिन प्रति छात्र कर दिया है। इसके बाद अब इसी 
    अनुसार इनके मेस मेनू को बदल दिया गया है। यह नया मेनू कोचिंग कैंप से लेकर 
    टूर्नामेंट में भी लागू रहेगा। यह लिखित आदेश स्कूल शिक्षा निदेशक की ओर से सभी 
    जिलों के उप निदेशकों को जारी किए गए हैं। नए निर्देशों के मुताबिक अंदर 14 
    लड़के और लड़कियां के लिए मैस मैन्यू भी नोटिफाई किया गया है। 
        
    पहले स्कूली बच्चों को टूर्नामेंट में ले जाने के लिए सामान्य शिक्षकों की 
    ड्यूटी लगा दी जाती थी, पर अब उस पर भी रोक लगा दी गई है। ऐसे में बच्चे 
    टूर्नामेंट के लिए कैसे अभ्यास करते होंगे इसका अंदाजा भी सहजता से लगा जा सकता 
    है। ऐसे में खिलाड़ियों की डाइट मनी बढ़ाने से कोई अव्वल खिलाड़ी सरकारी स्कूलों 
    से निकलने वाला नहीं है। इसका कारण यह बताया गया है कि पांच साल से शारीरिक 
    शिक्षकों की स्कूलों में न तो भर्ती हुई है और न ही पदोन्नति ही हुई है। ऐसे 
    में प्रदेश शारीरिक शिक्षक संघ ने सरकार और विभाग पर शारीरिक शिक्षकों के साथ 
    सौतेला व्यवहार करने का आरोप भी लगाया है। 
        
    इन हालातों में खिलाड़ी बच्चों को लंच में पनीर, राइस, रोटी या पूरी, पापड़, 
    सलाद, अचार, दाल, सीजनल सब्जियां, दही या रायता और स्वीट डिश का मीनू कोई मायने 
    नहीं रखता है। रिफ्रेशमेंट के लिए फल या जूस दिए जाने से खिलाड़ी तगड़े नहीं होने 
    वाले हैं जब तक उन्हें खेल प्रशिक्षक नहीं मिल जाते हैं। बच्चों के लिए घोषित 
    स्वीट डिश में मिठास तब आएगी जब मैदान में पसीना बहाने वाले खेल प्रशिक्षक भी 
    साथ होंगे। प्रदेश के 200 वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में डीपीई के पद रिक्त हैं। 
    जबकि 400 से अधिक स्कूलों में डीपीई पद स्वीकृत ही नहीं हैं। ऐसे में 600 से 
    अधिक वरिष्ठ माध्यमिक स्कूलों में डीपीई नहीं हैं। 
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