संविधान छोड़ा, लोगों ने
राहुल को छोड़ दिया
जीते हुए
हरियाणा को हार गई कांग्रेस पार्टी...
विशेष संवाददाता
शिमला
: कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने हरियाणा चुनाव में संविधान का साथ छोड़ा
तो लोगों ने उनका साथ छोड़ दिया। जो कां्रग्रेस हरियाणा चुनाव में भाजपा का
सफाया करने जा रही थी उसका बुरी तरह सफाया हो गया। अब कुछ गलत निर्णयों के लिए
राहुल गांधी की जमकर चैतरफा आलोचना हो रही है कि वह हरियाणा को संभालने में
पूरी तरह विफल रहे हैं।
इससे पहले हुए लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी जिस भी जनसभा को संबोधित करने के
लिए जाते थे तो भारत के संविधान की किताब का पाकेट एडीशन लेकर जाते थे। वह
लोगों के सामने संविधान की किताब को लहराते हुए कहते थे कि इस संविधान की रक्षा
करो। इसका अच्छा परिणाम भी उन्हें लोकसभा चुनाव में मिला। हरियाणा चुनाव में
उन्होंने न तो भारत के संविधान की किताब लहराई और न ही भारत के संविधान के बारे
में बात की। शायद उन्हें यह जानकारी ही नहीं है कि भारत के संविधान में क्या
लिखा है।
यह भी कहा जा सकता है कि राहुल गांधी भारत के संविधान के लहराए जाने की ताकत को
समझ नहीं पाए। जब वह जनसभा में भारत के संविधान की किताब लहराते थे तो भारत के
संविधान के जानकार भी राहुल गांधी से यह उम्मीद लगा लेते थे कि राहुल गांधी
भारत के संविधान की सुरक्षा ही नहीं करेंगे बल्कि संविधान में दिए गए नागरिकों
के अधिकार के प्रहरी के रूप में भी अलख जगाते रहेंगे। लेकिन जब उन्होंने भारत
के संविधान की किताब को हरियाणा के चुनावों में छोड़ दिया तो लोगों को लगा कि वह
भारत के संविधान को एक राजनैतिक ड्रामे के लिए लहरा रहे थे।
इसका नतीजा यह निकला कि चुनाव में 90 सीटों वाली हरियाणा विधानसभा में जहां वह
60 सीटें जीत रहे थे, वहीं वह 37 सीटों पर अटक गए। वहीं भाजपा जिसके 25 सीटें
जीतने पर भी संशय बना हुआ था वह 48 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत प्राप्त कर गई।
हरियाणा के चुनाव में जहां ईवीएम में हेराफेरी किए जाने के आरोप लगाए जा रहे
हैं वहीं निर्णय लेने में राहुल गांधी की गलतियां भी गिनवाई जा रही हैं। जिस
कारण लोगों ने राहुल गांधी पर विश्वास नहीं जताया। ईवीएम की बात हम इसलिए नहीं
करना चाहते कि क्योंकि इसमें चुनाव आयोग हमेशा अपने स्टेटुटरी बाॅडी होने का
लाभ उठाकर हमेशा बचता रहा है। ईवीएम हेराफेरी भले ही साफ दिखती हो लेकिन उसके
लिए पर्याप्त सबूत जुटाने बहुत कठिन हैं।
जहां तक राहुल गांधी की बात है उनसे हरियाणा चुनाव में कुछ गलतियां हुई जिसके
कारण उनका वोट बैंक ऐन वक्त पर हाथ से फिसल गया। अंतिम दिनों में भुपेन्द्र
सिंह हुड्डा और कुमारी शैलजा को पीछे करके खुद हरियाणा की कमान संभालना भी
राहुल को भारी पड़ गया। उन्हें समझना चाहिए था कि सेनापति कितना भी ताकतवर क्यों
न हो सेना यदि कमजोर हो तो युद्ध नहीं जीता जा सकता है। करीब 20 ऐसे खोखले
लोगों को सिर्फ किसी का चाटूकार होने पर टिकट थमा दिया गया, जो बुरी तरह हार
गए।
टिकट आबंटन में वह राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली की तरह हरियाणा में भी
वयोवृद्ध नेता के दबाव में आ गए और परिणाम भी राजस्थान और दिल्ली जैसा ही सामने
आ गया। बुजुर्ग और नकारे नेताओं को जरूरत से ज्यादा एहमियत देने से युवा वर्ग
राहुल गांधी के हाथों से छिटक गया। वह चुनाव में जातिगत समीकरणों में ही उल्झे
रह गए और भारत के संविधान की ताकत को छोड़ दिया जबकि भारत का संविधान पहले से ही
सभी वर्गों, जातियों, क्षेत्रों और प्रांतों को साथ लेकर चलने का सबसे बड़ा
हथियार है।
संविधान की ताकत उन्हें हरियाणा के चुनाव में नहीं मिल सकी। उन्हें हुड्डा और
शैलजा में टिकट आबंटन ठीक से बराबरी का करवाना चाहिए था और दोनों को अपनी ताकत
दिखाने का मौका खुलकर देना चाहिए था। जो बहुमत लाने में ज्यादा सफल हो जाता वह
अपने आप मुख्यमंत्री बन जाता। राहुल गांधी को दो टूक कह देना चाहिए था कि जिसे
ज्यादा विधायक कहेंगे वही मुख्यमंत्री बन जाएगा। यदि वह ऐसा कर जाते तो आज बाजी
राहुल गांधी के हाथ में होती। साथ ही वह हार की माथापच्ची में पढ़ने की बजाए
महाराष्ट्र चुनाव की बात कर रहे होते, जहां राहुल गांधी का कद अब पहले से छोटा
हो गया है।
शायद हरियाणा चुनाव ने राहुल गांधी को यह साफ संदेश दे दिया है कि युवाओं की
अवहेलना से देश का युवा उन्हें छोड़ चुका है। वह युवाओं की कितनी भी बात कर लें
लेकिन वह धरातल पर नजर आनी भी चाहिए। उन्हें काबिल युवाओं को छांटने की स्किल
अपने भीतर पैदा करनी होगी। हरियाणा में कांग्रेस की जीत के कयास पहले से लगाए
जाने लगे थे और ऐसे में कांग्रेस में पुराने दबदबा रखने वाले नामी खिलाड़ी आगे आ
गए और युवा पीछे छूट गए। शायद यह हार युवाओं ने कांग्रेस को इसलिए दे दी कि
कांग्रेस में युवाओं को आगे लाने के युग की शुरुआत हो सके। देखते हैं भविष्य
में कांग्रेस अपना भविष्य सुधारने के लिए क्या करती है। वह मध्य प्रदेश,
राजस्थान, उत्तराखंड, पंजाब, दिल्ली और अब हरियाणा जैसी गलती करती है या उसमें
सुधार लाती है।
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