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    संपादकीय 
    
    
    संविधान के मार्ग पर आना होगा 
    
         सरकारें 
    कितनी भी उछल कूद कर लें उन्हें एक न एक दिन तो संविधान के मार्ग पर आना ही 
    पड़ेगा। मौजूदा मोदी सरकार पर संविधान को छोटा मानकर चलना कभी भी भारी पड़ सकता 
    है। यह भी सर्वविदित है कि एक आदमी की सत्ता हमेशा नहीं रहती है। एक न एक दिन 
    उसे सत्ता से बाहर जाना ही पड़ता है। वह दिन संविधान तोड़ कर सरकार चलाने वालों 
    पर बहुत भारी पड़ता है। संविधान में अपने अनुकूल संशोधन करके भी ज्यादा दिन तक 
    सरकारें नहीं चलाई जा सकती हैं। भले ही पूरा तंत्र सरकार के कब्जे में क्यों न 
    आ जाए। 
     भारत सरकार को संविधान से टकराव करने पर उतारू नहीं होना 
    चाहिए। सबसे बुरी बात यह है कि जब सुप्रीम कोर्ट किसी याचिका पर संविधान की 
    व्याख्या कर देता है तब सरकार को संविधान संशोधन करने की युक्ति क्यों सूझती 
    है। क्या सरकार को इस बात का पता पहले ही नहीं चल जाता है कि जो योजना वह देश 
    के नागरिकों के लिए बनाने जा रही है उसमें कहीं भारत के संविधान का उलंग्घन तो 
    नहीं हो रहा है। यदि सरकार पहले संविधान संशोधन करे और फिर योजना को लागू करे 
    तो उसे कम से कम अदालतों में होने वाली फजिहत से बचा जा सकता है। साथ ही लोगों 
    में यह संदेश भी जाएगा कि सरकार भारत के संविधान के तहत अपने कार्यों को अंजाम 
    दे रही है। 
     एक लोकप्रिय सरकार उसे ही कहा जा सकता है जो देशवासियों 
    के बनाए संविधान पर शत प्रतिशत खरी उतरती है। यदि सरकार को संविधान के उलंग्घन 
    के मामले में कोई नागरिक पकड़ लेता है तो उसे कम से कम लोकप्रिय कतई नहीं कहा जा 
    सकता है। भले ही कितनी भी तिकड़में लगाकर कोई अपने आपको संविधान का हितैषी क्यों 
    न बताता रहे। लोग सरकार से अधिक विश्वास न्यायालयों पर करते हैं। लेकिन अगर 
    न्यायालयों से भी जनता की अपेक्षाएं समाप्त हो जाती हैं तब भी संविधान की 
    सीमाओं को नहीं लांघा जा सकता है। सरकार को इस आलोचना का शिकार भी होना पड़ता है 
    कि वह संविधान के प्रति ईमानदारी नहीं बरत रही है। यह एक सभ्य सरकार पर बहुत 
    बड़ा आरोप होता है। यह तभी संभव हो सकता है जब देश की संसद में सत्तापक्ष और 
    विपक्ष के लोग भारत के संविधान में पारंगत हों। अगर ऐसी स्थिति भी आ जाती है कि 
    संसद में बहुमत के आधार पर सारे फैसले सरकार लेने लगती है तो भी भारत का 
    संविधान अपनी मूल भावनाओं के खिलाफ नहीं जा सकता है। 
     सरकार को चाहिए कि वह किसी कार्य को करने से पहले देश की 
    जनता की भावनाओं को समझे और उसी के अनुसार अपने कार्यों को अंजाम दे। यदि सरकार 
    जन भावनाओं के अनुरूप अपने कार्यों को अंजाम नहीं देती है तो जनता में सरकार के 
    प्रति आक्रोश बढ़ता है। यहां यह बात भी समझने वाली है कि जन भावनाओं के सामने 
    संविधान भी कुछ नहीं है। सरकारें जन भावनाओं को देखते हुए ही कानून बनाती हैं 
    और संविधान संशोधन करती है। जनता देश में सर्वप्रिय है और वह कुछ भी करवा सकती 
    है। इसलिए सरकार को जनता से हमेशा डरना चाहिए।  |