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संपाकीय

टकराव का कुम्‍भ मेला प्रयाग

     प्रयागराज में चला कुम्भ इतिहास में टकराव के कुम्भ के नाम से याद किया जाएगा। कहते हैं यह कुम्भ 144 वर्ष बाद आया है। हलांकि यह एक खगौलिय घटना है और इसमें नक्षत्रों के बदलाव का कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुआ। पर इसे प्रचारित इस प्रकार किया गया कि यह अब तक लगे कुम्भ मेलों में यह सबसे अलग है। इस कुम्भ में जिस प्रकार का धार्मिक टकराव संत महात्माओं में देखा गया ऐसा इससे पहले किसी कुम्भ में नहीं देखा गया। पहले लगे सभी कुंभ निर्धारित व्यवस्थाओं के अनुसार ही चले हैं।
     इस बार के कुम्भ का जो विभत्स चेहरा सामने आया है वह श्रद्धालुओं के पैरों तले कुचले जाने की घटनाओं को लेकर आया है। हृदयविदारक प्रसंग यह है कि वहां मरने वाले श्रद्धालुओं की मौत को छुपाने के आरोप प्रशासन और योगी सरकार पर लगे हैं। वैसे तो सरकारी घोषणा के अनुसार वहां सिर्फ 30 श्रद्धालुओं की मौत दर्शायी जा रही है लेकिन कहा जा रहा है वहां भगदड़ में कुचले जाने वालों की संख्या हजारों में है। वैसे कुम्भ में श्रद्धालुओं की मौत कोई नई घटना नहीं है इससे पहले लगे कुम्भ मेलों में भी श्रद्धालु मारे जाते रहे हैं। पर इस बार प्रश्न सरकारी व्यवस्थाओं पर खड़े किए गए हैं।
     इस बार के कुम्भ को योगी सरकार द्वारा इस प्रकार प्रचारित किया गया जैसे यह जो कुम्भ आज तक के कुम्भ से सबसे अलग हो। जबकि यह साधारण सी खगौलीय प्रक्रिया है। कहते हैं वृहस्पति ग्रह 12 वर्ष बाद सूर्य की परिक्रमा को पूरा करता है और तभी यह परंपरा बनी कि इस दिन लोग पवित्र पावन गंगा नदी के संगम पर एकत्र होकर स्नान करके अपने पापों की मुक्ति की कामना करेंगे। कहते हैं कि यह इस प्रकार की परंपरा के अनुसार मनाया जाने वाला 12वां कुम्भ है। 12 को जब 12 से गुणा किया जाता है तो 144 बनता है। बस इसी बात को ऐसा प्रचारित किया गया कि 144 वर्ष बाद यह कुम्भ आ रहा है और इसमें जो गंगा के संगम में डुबकि लगा लेगा वह श्रेष्ठपुण्य को प्राप्त कर लेगा। जबकि ऐसा कुछ भी नया नहीं है।
     बस इसी प्रकार की बातों को प्रचारित करके वहां करोड़ों लोगों का जमावड़ा लगा दिया गया। जहां करोड़ों लोग एकत्र होंगे वहां अप्रिय घटना घटने की संभावनाएं भी अधिक होंगी। प्रयागराज जहां गंगा, जमुना और सरस्वती नदियों का संगम है वहां भगदड़ मचती रही और निर्दोष श्रद्धालु पैरों तले कुचल कर मरते रहे। योगी सरकार और कुम्भ प्रशासन पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने मौत के आंकड़ों को छुपाया। मरने वालों के परिजनों की मदद नहीं की। इस पर साघु संतों में ही विवाद पैदा हो गया। शंकराचार्य मुक्तेश्वारानंद ने योगी सरकार की खुली आलोचना की और उनके खिलाफ कुछ और संतों ने भी उल्टे सीधे बयान उनके खिलाफ दिए। इस कुम्भ में सबसे दुखद प्रसंग यह आया कि भगदड़ में मौत का तंडव होने के बाद नाग साधुओं के स्नान को भी पहली बार स्थगित करना पड़ा, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। कुल मिलाकर इस कुम्भ का जो बाजारीकरण किया गया उसके कारण भी कुम्भ के रोमांच पर बुरा असर पड़ा। राजनेताओं ने भी इसको प्रचार का माध्यम बना लिया।

 
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