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    सोलन में बन रहा 
    है जहर, सरकार खामोश 
    
    
    हिमाचल के स्वास्थ्य मंत्री को इस्तीफा देना चाहिए 
    
    विशेष संवाददाता 
    
    
        
    
    
    
     शिमला : 
    हिमाचल की घरती पर जहर बन रहा है और सरकार खामोश है। खांसी की दवा पीने से 
    मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा में 11 और राजस्थान में दो बच्चों की मौत हो गई है। 
    हिमाचल प्रदेश की पांच दवा कंपनियां जांच के घेरे में आ गई हैं और प्रदेश सरकार 
    खामोश है। जबकि इस दुर्घटना के हो जाने के बाद स्वास्थ्य मंत्री और सोलन के 
    विधायक कर्नल धनीराम शांडिल को तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। 
    क्योंकि पहले भी उनके पास हिमाचल में फर्मा उद्योग में बन रही नकली दवाओं की 
    जानकारी जाती रही है लेकिन वह कारगर कदम उठाने में नाकामयाब रहे हैं। 
     वैसे अब राजस्थान और मध्य प्रदेश की बनी कफ सिरप भी 
    विवादों के घेरे में आ गई ले लेकिन हिमाचल की बनी सिरप से मासूमों की मौतों के 
    बाद फिर ड्रग कंट्रोलर की पिटी पिटाई कार्यवाही शुरू हो गई है। एहतियात के तौर 
    पर नेक्सा डीएस खांसी की सिरप का उत्पादन तत्काल रोक दिया गया है, सप्लाई चेन 
    को बंद करने के आदेश जारी हुए हैं और कंपनियों को संदिग्ध दवाओं को बाजार से 
    रिकॉल करने के निर्देश दिए गए हैं। जबकि इस संगीन मामले में ड्रग इंस्पेक्टर को 
    प्रदेश सरकार द्वारा गिरफ्तार किया जाना चाहिए था। उसकी देख रेख में यह 
    जहरनुमाद दवा बाजार में कैसे पहुंच गई, जिसके कारण बच्चों की मौत हो गई है। यह 
    सिरप नेसन फार्मास्यूटिकल्स द्वारा निर्मित था और सोलन व बद्दी की पांच 
    कंपनियां भी यही दवा मध्य प्रदेश के अस्पतालों को सप्लाई करती थीं। मध्य प्रदेश 
    सरकार ने हिमाचल के दवा उद्योग पर विश्वास करते हुए इन दवाइयों का आर्डर दिया 
    था। हिमाचल प्रदेश का ड्रग विभाग जो स्वास्थ्य मंत्रालय के अधीन आता है की यह 
    कानूनी जिम्मेदारी था कि हिमाचल में बनी कोई भी दवा गुणवत्ता के नाम पर कहीं भी 
    कमजोर न हो। लेकिन यहां से तो दवा के नाम पर जहर सप्लाई कर दिया। यह जिम्मेदारी 
    सरकार नहीं तो और कौन लेगा। 
     राज्य दवा नियंत्रक विभाग और केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण 
    संगठन की संयुक्त तीन सदस्यीय टीम ने बद्दी और सोलन स्थित पांच दवा कंपनियों के 
    उत्पादन इकाइयों की रिस्क बेस्ड इंस्पेक्शन की। टीम ने इन इकाइयों में संशोधित 
    शेड्यूल-एम और गुड लैबोरेटरी प्रैक्टिस के अनुपालन की स्थिति की जांच की। जांच 
    रिपोर्ट में सामने आया है कि जिन बच्चों को यह सिरप दी गई उसमें डाइएथिलीन 
    ग्लाइकॉल और एथिलीन ग्लाइकॉल जैसे जहरीले रसायन मिले। ये सामान्यतः ऑटोमोबाइल 
    सेक्टर में कूलेंट और एंटी-फ्रीज के रूप में इस्तेमाल होते हैं और थोड़ी मात्रा 
    भी किडनी और दिमाग को गंभीर नुकसान पहुंचा सकती है। 
     राज्य औषधि नियंत्रक ने कहा है कि हिमाचल से जिन दवाओं की 
    सप्लाई एमपी को हुई थी उनकी पहचान कर ली गई है। उत्पादन और सप्लाई रोकने के 
    आदेश दिए गए हैं तथा कंपनियों को रिकॉल करने के निर्देश भी जारी किए गए हैं। 
    ऐसे आदेश वह जब भी दवा कंपनियों के सेंपल फेल होते हैं तो अक्सर हर माह जारी 
    करते रहते हैं। अब वह झूठ बोलने पर भी उतारू हो गए हैं कि उनकी प्राथमिकता 
    जनसुरक्षा है। वह इस मामले को रुटीन मामला मानकर बैठे हैं जबकि उन्हें इस बात 
    का तनिक भी एहसाहस नहीं है कि इस बार मामला मासूम बच्चों की मौत होने का है। 
    उन्हें तो अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए था। पर अब वह निर्लजता पूर्वक कह 
    रहे हैं कि कंपनियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि जब तक जांच रिपोर्ट पूरी तरह 
    से सुरक्षित नहीं बताती, तब तक इन उत्पादों की बिक्री और सप्लाई रोक दी जाए। 
    मामला गंभीर है और हम पूरी सख्ती से निगरानी कर रहे हैं। 
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