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    बिहार विधानसभा 
    चुनाव 6 और 11 नवंबर को 
    
    
    ज्ञानेश का फैसला आएगा नेहरू के जन्म दिन पर... 
    
    विशेष संवाददाता 
    
    
         
    
    
    
     शिमला : 
    भारत वर्ष का सबसे बड़ा विवादास्पद विधानसभा चुनाव अब छह नवंबर को शुरू होगा। 
    भारतीय निर्वाचन आयोग ने बिहार चुनावों की घोषणा कर दी है। दो चरणों में होने 
    जा रहे इस चुनाव के लिए मतदान छह और 11 नवंबर को होगा। फैसला भारत के प्रथम 
    प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के जन्म दिन पर 14 नवंबर को होगा। 
     निर्वाचन आयोग की इस घोषणा के बाद बिहार के चुनाव में 
    उबाल आ गया है। जिस प्रकार बिहार चुनाव की मतदाता सूची को लेकर कानूनी जंग 
    सुप्रीम कोर्ट में लड़ी गई उससे इस चुनाव में भारत ही नहीं पूरे विश्व की नजरें 
    टिक गई हैं। देश में पहली बार एसआईआर के नाम पर मतदाताओं की नागरिका पर 
    प्रश्नचिन्ह भारतीय निर्वाचन आयोग ने खड़ा कर दिया। इसमें चुनाव आयोग ने 11 
    दस्तावेज के आधार पर मतदाता सूची बनाने के आदेश जारी कर दिए जिनमें आधार कार्ड 
    को मान्य नहीं रखा गया। सुप्रीम कोर्ट के बार बार आग्रह के बाद भी चुनाव आयोग 
    आधार कार्ड को मान्य दस्तावेज मानने को तैयार नहीं था। आखिरकार सुप्रीम कोर्ट 
    को आदेश पारित कर आधार कार्ड को मान्यता प्राप्त दस्तावेज बनाना पड़ा। इस पूरे 
    घालमेल के बाद चुनावों की तारीख घोषित कर दी गई है। अब यह चुनाव कितने 
    विवादास्पद रहेंगे इसका पता चुनाव परिणाम के बाद ही चल पाएगा। 
     फिलहाल बिहार में चुनाव हो रहा है और सभी की निगाहें इस 
    बात पर टिकी हुई हैं कि यह चुनाव किसकी सरकार बिहार में बनवाएगा। बिहार में किस 
    प्रकार से पारदर्शी चुनाव होगा और चुनाव आयोग किस प्रकार से सभी राजनैतिक 
    पार्टियों से समान रूप से आचरण करेगा यह सब बातें चुनाव प्रचार से लेकर मतदान 
    तक सुनी जाती रहेंगी। बिहार में बबाल होने की पूरी संभावना है। यदि भाजपा ने 
    सहयोगियों के लिए उचित सीटें न छोड़ी तो वह अन्य सीटों पर इंडिया गठबंधन के 
    प्रत्याशियों को भी वोट डाल सकते हैं। 
     कहते हैं बिहार में तिकोणीय मुकाबला होने के आसार दिख रहे 
    हैं। एक ओर जहां भाजपा और नितीश कुमार के साथ एनडीए के सहयोगी हैं, वहीं दूसरी 
    तरफ लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव और राहुल गांधी का गठजोड़ इंडिया गठबंधन 
    के साथ चुनावी मैदान में है। लेकिन बिहार में तीसरी पार्टी प्रशांत किशोर के 
    नेतृत्व में विधानसभा चुनावों में ताल ठोक रही है। कहते हैं कि बिहार में मुख्य 
    मुकाबला तो एनडीए और इंडिया के बीच है लेकिन प्रशांत किशोर एक ऐसे प्लेयर बनकर 
    उभरे हैं जो दोनों में से किसकी भी गठबंधन को नुक्सान पहुंचा सकते हैं। यही नहीं 
    यदि मतदाताओं का रुझान प्रशांत किशोर की ओर अपेक्षा से अधिक चला गया तो वह 
    किंगमेकर बनकर भी सामने आ सकते हैं। 
     बिहार चुनाव में सबसे बड़ी कहानी यह है कि चुनावों की घोषणा 
    हो जाने के बाद तक किसी भी पार्टी के बीच सीटों को लेकर बंटवारा नहीं हुआ था। 
    जबकि बिहार चुनाव कहां जाएगा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सी पार्टी कैसे 
    उम्मीदवारों को चुनाव मैदान में उतारती है। हलांकि बिहार में सबसे अच्छी स्थिति 
    में इंडिया गठबंधन ही नजर आ रहा है और सूत्र बताते हैं कि उनके बीच सीटों का 
    तालमेल भी हो चुका है। तेजस्वी यादव इस खेमे में सबसे बड़े खिलाड़ी हैं और उनकी 
    पार्टी को ही सबसे अधिक टिकट मिलेंगे। कांग्रेस की स्थिति भी पहले से अच्छी है 
    लेकिन वह 50 से कम सीटों पर ही तालमेल बिठा लेगी। यहां इस बात पर सबसे बड़ी चरचा 
    है कि मजबूत प्रत्याशियों को ही चुनाव मैदान में उतारा जाए और दोनों पार्टियों 
    में वोटों का विभाजन न हो। 
     उधर एनडीए में सीटों को लेकर जबरदस्त मारा मारी है। 
    रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान और हम पार्टी के जीतन राम मांझी टिकटों 
    को लेकर पूरी तरह से फैले हुए हैं। भाजपा के लिए यहां मुख्यमंत्री नितीश कुमार 
    भी कम बड़ी सिरदर्दी नहीं हैं वह चाहते हैं कि वह आधी से ज्यादा सीटों पर चुनाव 
    लड़ें ताकि उन्हें चुनाव के बाद भाजपा राजनीति से बाहर न फेंक सके। एनडीए का 
    नेतृत्च कर रही भाजपा या यूं कह लीजिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और 
    गृहमंत्री अमित शाह सबसे बड़े पशोपेश में हैं कि यदि सहयोगियों की बात मानकर वह 
    उनकी मांग पर सीटें छोड़ देंगे तो उनका पहली बार बिहार में परचम फहराने का सपना 
    ही टूट जाएगा। फिलहाल चुनाव तक बिहार में कुछ भी हो सकता है। 
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