दीपावली
पर विशेष लेख
भगवान राम पर आस्था का पर्व
है...
हिन्दू समाज में दीपावली भगवान
रामचन्द्र पर आस्था का प्रतीक है। हलांकि भगवान राम का नाम मौजूदा परिवेश में
एक राजनैतिक शब्द के रूप में परोसा जाने लगा है। लेकिन अधिक संख्या में आज भी
लोग राजनीति को एक कोने में धर कर भगवान राम में वही आस्था बनाए हुए है जैसी
आस्था सदियों से हिन्दू समाज में चली आ रही है। हमारी वह परंपरा लोकतांत्रिक ही
नहीं है सर्व धर्म संभव का प्रतीक भी है।
भगवान राम का नाम हर हिन्दू के लिए एक भावनात्मक लगाव से
भी जुड़ा हुआ है और मौजूदा परिवेश में भगवान राम का नाम लेकर उसी भावना पर
आक्रमण भी किया जा रहा है। कुछ भी हो भगवान राम वैसे ही है जैसे सदियों पहले थे
और हम सबकी दीपावली भी वैसी ही है जैसे सदियों पहले हिन्दू समाज के लिए थी।
मान्यता यह है कि कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अमावस्य की
काली रात को दीपावली पर्व मनाया जाता है। इसी दिन भगवान राम 14 वर्ष का बनवास
काटकर अपने धर अयोध्या लौटे थे। काली रात को वैसे भी अशुभ माना जाता है। तब
अयोध्यावासियों ने आग जलाकर चारों ओर उजाला करके अपने राजा रामचंद्र का स्वागत
किया था। बस तभी से यह पर्व दीपावली के रूप में मनाया जाने लगा है। तभी से इसे
अंधकार से प्रकाश की ओर जाने का उत्सव भी कहा जाने लगा है।
दीपावली अब सिर्फ हिन्दुओं का पर्व ही नहीं रह गया है। यह
प्रेरणा अब सभी धर्मों के लोगों ने अपना ली है। यदि हम पौराणिक कथाओं पर से
ध्यान हटा दें तो दुनियां के हर धर्म में दीपावली का एक अलग महत्व दिखाई देता
है। सभी मानते हैं कि ज्योति और प्रकाश को हर धर्म में ज्ञान का रूप माना गया
है। दीप प्रज्वलित करके हर इंसान अपने भीतर ज्ञान को आमंत्रित करने का संदेश
देता है और शायद इसी ज्ञान को दीपावली कहते हैं।
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