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About Gras             ग्रास के बारे में जानकारी

     ग्रास साप्‍ताहिक और इसकी वेबसाइट www.grasindia.com हिमाचल प्रदेश के सोलन नगर से प्रकाशित किए जाते है। इस समाचार पत्र का संपादन वरिष्‍ठ पत्रकार श्री संजय हिंदवान करते हैं। यह एक मात्र ऐसा साप्‍ताहिक समाचार पत्र है जिसे प्रदेश और भारत देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी हिन्‍दी को समझने वाले लोग रुचि के साथ पढ़ते हैं। भारत के ऐसे क्षेत्रों जहां हिन्‍दी को देश के नागरिक कम समझते हैं वहां भी ग्रास की पाठक संख्‍या में निरंतर वृद्धि‍ हो रही है। टेबुलेट साइज के इस समाचार पत्र में हिमाचल प्रदेश के ही नहीं देश-विदेश भर के राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक विषयों पर बेबाक टिप्‍पणियां प्रकाशित की जाती हैं।

     दो नवंबर 1994 को ग्रास का प्रकाशन सोलन नगर (हिमाचल प्रदेश) से बहुत छोटे स्‍तर पर प्रयोग के रूप में किया गया था। प्रारंभ से ही अपनी दबंगता के कारण ग्रास को कई प्रकार की बाधाओं का सामना करना पड़ा। समस्‍याओं और बाधाओं के बावजूद यह निर्भीक और निष्‍पक्ष साप्‍ताहिक आम लोगों के बीच अपनी लोकप्रयिता को बनाए रखे हुए रुक रुककर लोगों के बीच आता रहा है। पिछले करीब आठ वर्षों से यह निरंतर रूप से हिमाचल प्रदेश और भारत वर्ष के प्रबुद्ध लोगों के बीच अपनी पहचान को बनाए हुए है।

     वर्ष 2009 के गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) को ग्रास साप्‍ताहिक का इंटरनेट संस्‍करण शुरू किया गया। तब से इसे www.grasindia.com के माध्‍यम से दुनियां भर में देखा जा रहा है। सोशल नेटवर्किंग साइटों में भी ग्रास साप्‍ताहिक के लिंग पाठकों की सुविधा के लिए छोड़े जाते हैं। जिसके माध्‍यम से पाठक हमारी वेबसाइट तक आसानी से पहुंच सकते हैं।

 

राष्‍ट्रीय स्‍तर पर ग्रास की उपलब्धियां

 

1.     देश भर की विधानसभा और लोकसभा में अनुसूचित जाति और जनजाति की करीब 150 सीटों को भारतीय चुनाव आयोग 2001 से हजम किए हुए बैठा था। इसके लिए ग्रास की टीम ने एक समाजसेवी संस्‍था True Fighter के माध्‍यम से एक जनहित याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की। न्‍यायालय से इस कानूनी जंग पर कोई फैसला आ पाता, इससे पहले ही भारत सरकार ने 'पुनर्सीमांकन आयोग की रिपोर्ट' को लागू कर अपनी जान बचा ली। इस जंग में हमारा तर्क यह था कि देश में अनुसूचित जाति और जनजाति की सीटें बढ़नी चाहिए, पुनर्सीमांकन आयोग का देश भर में इन सीटों के अधिक हो जाने से कोई संबंध नहीं है। यह बात संविधान के अनुच्‍छेद 332 में साफ तौर पर दर्ज है। यह सीटें जनसंख्‍या बढ़नी के साथ ही अधिक हो जानी चाहिए थी। इस जनहित याचिका का लाभ यह मिला कि अनुसूचित जाति के लोगों को अपना रुका हुआ संवैधानिक अधिकार प्राप्‍त हो गया।

2.     ग्रास साप्‍ताहिक ने ही देश भर के लोगों को इस बात की सबसे अधिक जानकारी दी कि सन् 2003 में वाजपेयी सरकार ने संविधान के अनुच्‍छेद 164 में 164 (1ए) अनुच्‍छेद शामिल कर इस बात की बाध्‍यता प्रत्‍येक प्रांत पर लागू कर दी थी कि प्रत्‍येक प्रांत में अब मुख्‍यमंत्री सहित मंत्रिपरिषद के सदस्‍यों की संख्‍या कम से 12 और 15 प्रतिशत से अधिक नहीं हो सकती है। इसका असर पूरे देश में यह हुआ कि जिन राज्‍यों में 90 से कम विधानसभा सीटें हैं वहां मंत्रिपरिषद में मुख्‍यमंत्री सहित 12 मंत्री ही बनाए जा सकते थे। जब पंजाब, उत्‍तराखंड. और हिमाचल प्रदेश में इस अनुच्‍छेद को तोड़ने का क्रम मुख्‍यमंत्रियों ने शुरू किया तो ट्रयू फाइटरस ने तीनों प्रांतों के मुख्‍यमंत्रियों के खिलाफ अलग अलग याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर कर दी। उत्‍तराखंड में 19 दिन बाद ही संविधान के अनुच्‍छेद के अनुरूप 12 मंत्रियों की सरकार बना ली गई। पंजाब सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पंजाब में संविधान के अनुच्‍छेद 164 (1ए) का सख्‍ती से पालन नहीं हुआ है। लेकिन हिमाचल प्रदेश के मुख्‍यमंत्री इस अनुच्‍छेद के खिलाफ हट पर डटे रहे और भारत सरकार इस पर आंखें मूंदकर बैठी रही। इसी बात को लेकर राष्‍ट्रपति तक हम गए और यह लड़ाई केन्‍द्रीय सूचना आयोग में भी लड़ी गई।

3.     हिमाचल प्रदेश में पूर्व मुख्‍यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने पहले दिन से ही संविधान के अनुच्‍छेद 164 को तोड़ते हुए मुख्‍यमंत्री पद की अकेले शपथ ले ली। याथ ही वाजपेयी सरकार द्वारा किए गए संविधान संशोधन को ठोकर मार दी। ग्रास ने सुप्रीम कोर्ट में इस जंग को लड़ने के बाद राष्‍ट्रपति के पास एक ज्ञापन भेज कर विधानसभा को बर्खास्‍त कर देने की मांग की थी। इसे राष्‍ट्रपति से केंद्रीय ग़ृहमंत्रालय के पास भेज दिया। इस मामले की हिमाचल में खूब चरचा रही। इसका असर यह हुआ कि मुख्‍यमंत्री को अपनी सरकार को बचाने के लिए दो मंत्री तुरंत नियुक्‍त करने पड़े।

4.     ग्रास साप्‍ताहिक ने पहले सन् 1995 में सोलन के चिल्‍ड्रन पार्क, सोलन को पंजाब वक्‍फ बोर्ड, अंबाला केंट से छुड़वाकर हिमाचल प्रदेश सरकार के नाम करवाया था। इसके बाद ग्रास ने नगर परिषद द्वारा चिल्‍ड्रन पार्क में बन रही पार्किंग और बच्‍चों की जमीन पर चल रही व्‍यावसायिक गतिविधियों को रोकने के लिए प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय से जनहित याचिका के माध्‍यम से फैसला करवाया। नगर परिषद के सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने के साथ ट्रयू फाइटरस ने भी एक विशेष अनुमति याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की। यह जंग भी ग्रास साप्‍ताहिक ने अपनी ट्रयू फाइटर्स संस्‍था के नाम पर सुप्रीम कोर्ट से जीत ली है। यह मामला भी सोलन और हिमाचल में खूब चरचा का विषय रहा और आज चिल्‍ड्रन पार्क की सुविधा को पूरे सोलन के लोग भोग रहे हैं।

राज्‍य स्‍तर पर भी कानूनी जंग जारी

 

5.     ग्रास ने हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के तहत एक जनहित याचिका में सभी जिला मुख्‍यालयों पर उपभोक्‍ता अदालतें शुरू करने की याचिका पर निर्णायक फैसला करवाया। लेकिन सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के बावजूद अभी तक जिला मुख्‍यालयों पर स्‍वतंत्र उपभोक्‍ता अदालतें नहीं खोली हैं। जबकि सरकार ने कोर्ट में दायर हल्‍फनामें में शीघ्र ही कुछ और उपभोक्‍ता अदालतें खोलने की बात करके अदालत को गुमराह किया। इस पर कानूनी जंग जारी है।

6.     स्‍कूली बच्‍चों को प्रशिक्षण प्राप्‍त अध्‍यापकों से अच्‍छी से अच्‍छी शिक्षा प्राप्‍त करने का संवैधानिक अधिकार है। इस आधार को लेकर भी ट्रयू फाइटरस की कुछ याविकाएं प्रदेश उच्‍च न्‍यायालय में विचाराधीन हैं। इन याचिकाओं में एनसीटीई को प्रदेश में अपने कार्यों को ठीक तरीके से अंजाम देने के लिए ग्रास की टीम ने बाद्य किया है। जिससे प्रदेश में शिक्षा का स्‍तर कुछ बढ़ना शुरू हुआ है और सरकारी स्‍कूलों के साथ साथ प्रायवेट स्‍कूलों में भी प्रशिक्षित अध्‍यापकों की नियुक्तियां शुरू हो सकी।

7.     हिमाचल प्रदेश में जाली अनुसूचित जाति के प्रमाण पत्र प्राइज़ कर लेने के मामले को हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में दाखिल किया गया है। इस याचिका में प्रदेश के कुछ मंत्रियों और पूर्व विधायकों के अतिरिक्‍त गलत अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र जारी करने वालों और इसे ठीक मानने वाले सरकार के अधिकारियों को प्रतिवादी बनाया गया था। हलांकि अभी भी जाली अनुसूचित जाति प्रमाण पत्र का उपयोग देश भर में हो रहा है और इसके खिलाफ ग्रास की लड़ाई जारी है।

8. हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर संजय हिंदवान ने राज्‍य मुख्‍य सूचना आयुक्‍त के फैसले को हाई कोर्ट से पल्‍टवाया। इस याचिका में कहा गया था कि सूचना आयोग के पास जुर्माने को कम करने की कोई शक्ति नहीं है। इसकी चरचा भी देश भर में सूचना के अधिकार के लिए लड़ने वानों के बीच रही।

9. शिक्षा के अधिकार अधिनयम के तहत और पर्यावरण को लेकर जनहित याचिकाएं हाई कोर्ट के विचाराधीन हैं। साथ ही कई याचिकाएं National Green Tribunal में भी विचाराधीन हैं तथा कई याचिकाएं जीतने का श्रेय भी हमें मिला है।

     इसके अतिरिक्‍त ग्रास की टीम का प्रशासनिक, राजनैतिक और अदालतीय स्‍तर पर विभिन्‍न प्रकार के सुधार करवाने का प्रयास जारी है। ग्रास साप्‍ताहिक समाचार पत्र में छपे समाचार को हर स्‍तर पर काफी गंभीरता से लिया जाता है और यह समाचार पत्र भी आम लोगों की समस्‍याओं को हल करवाने में काफी कारगर साबित हुआ है।

संजय हिंदवान

संपादक

 ग्रास साप्‍ताहिक, सपरून, सोलन (हिमाचल प्रदेश)- 173211 (भारत) फोन न्‍. 09418104770

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