राष्ट्रपति और सुप्रीम कोर्ट
बताएं
अनुच्छेद 60 किस
लिए है ...
संजय हिंदवान
शिमला : देश की राष्ट्रपति और देश के सुप्रीम कोर्ट को मिलकर भारत के
संविधान के अनुच्छेद 60 के बारे में देश की जनता को साफ साफ बताना चाहिए कि
संविधान निर्माताओं ने आखिर इससे किस महत्व से संविधान में रखा है। इस अनुच्छेद
में राष्ट्रपति की शपथ है और यहीं से हमारे लोकतंत्र का उदगम हुआ था।
देश में आजकल सांसद सुप्रीम कोर्ट पर सीधा आरोप लगा रहे हैं कि वह संसद के
अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण कर रहा है। इसके लिए कई उटपटांग टिप्पणियां भी
सुप्रीम कोर्ट पर की गई हैं, उस पर हम नहीं जाएंगे। सुप्रीम कोर्ट ने भी
महामहिम राष्ट्रपति तक को विधानसभा और संसद द्वारा पारित बिलों के बारे में
दिशा निर्देश जारी कर दिए हैं। इन घटनाओं से पूरे देश की न्यायिक व्यवस्था और
कार्यपालिका में बड़ा बवाल मचा हुआ है, जिसका अंत आसान नहीं है।
नए मुख्य न्यायधीश बी.आर. गवई के पद ग्रहण शपथ समारोह के बाद देश की राष्ट्रपति
द्रोपदी मुर्मू ने नए मुख्य न्यायाधीश से 14 सवालों का जवाब सुझाव के रूप में
मांग लिया है। हलांकि जब तक भारत में केन्द्र सरकार की काउंसिल आफ मिनिस्टर्स
मौजूद हैं तब तक राष्ट्रपति उसी की सलाह पर कार्य करने के लिए बाद्य है। लोकसभा
को भंग करने के बाद राष्ट्रपति अपने अन्य सलाहकारों को नियुक्त करके सरकार चला
सकती हैं। यह संवैधानिक बातें बहस का विषय हो सकती हैं लेकिन समाधान तब होगा जब
भारत के संविधान की व्याख्या हर पहलू से की जाएगी। इसके लिए सबसे पहले सामने
आता है भारत के संविधान का अनुच्छेद 60 जो देश के राष्ट्रपति की शपथ के रूप में
भारत के संविधान के मूल अनुच्छेद में दर्ज है।
अनुच्छेद 60 को देखने से पहले यह जानना जरूरी है कि यह भारत के संविधान का मूल
अनुच्छेद है जिसमें राष्ट्रपति की शपथ के साथ भारत के संविधान को बचाने के लिए
राष्ट्रपति की जिम्मेदारी भी तय की गई है। यह शपथ भारत के संविधान के स्डयूल
में दर्ज शपथ जैसी तो बिलकुल भी नहीं है, जो देश के अन्य पदों पर बैठने वाले
लोगों को दिलवाई जाती है।
इसलिए भारत के सुप्रीम कोर्ट और देश की राष्ट्रपति को मिलकर हम भारत के लोगों
को यह स्पष्ट करना चाहिए कि इस अनुच्छेद 60 में राष्ट्रपति ने जो वायदा हम भारत
के लोगों से किया है वह क्या झूठा है। यदि राष्ट्रपति अनुच्छेद 60 में
देशवासियों से भारत के संविधान की संरक्षण (Preserve), बचाव (Protect) और
रक्षा (Defend) की शपथ को पूरा नहीं करती है और उसे बार बार तोड़ती है तो उसे
कौन रोकेगा। यह भी कहा जाता है कि राष्ट्रपति की शक्तियों का इस्तेमाल भारत
सरकार करती है। लेकिन यह कहीं नहीं कहा गया है कि राष्ट्रपति की शपथ को भी भारत
सरकार पूरा करेगी। यह भी कहा जा सकता है कि राष्ट्रपति के नाम पर यदि भारत
सरकार या वह स्वयं संविधान को तोड़ती है तो उसे कौन रोकेगा।
मौजूदा विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने अनुच्छेद 142 का सहारा लेकर राज्यपालों और
राष्ट्रपति तक को बिल से संबंधित दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसी अनुच्छेद से
सुप्रीम कोर्ट भारत के संविधान का संरक्षक बन जाता है। इसी पर तमाम बहस
केन्द्रीत हो गई है। लेकिन मूल जड़ पर कोई नहीं जाना चाहता है कि राष्ट्रपति की
शपथ में ही उसे कानूनी ताकत संविधान से मिली हुई है। क्योंकि उसकी शपथ को ही
संविधान निर्माताओं ने मूल अनुच्छेद में रखा है। यह भी माना जाना चाहिए कि शपथ
व्यक्तिगत और एकल होती है। इसे कोई और पूरा नहीं कर सकता है।
यदि राष्ट्रपति स्वयं भारत के संविधान के अनुच्छेद 60 को तोड़ते हुए पाया जाता
है तो सुप्रीम कोर्ट अनुच्छेद 142 का सहारा लेकर राष्ट्रपति तक को भी संविधान
के विषय पर निर्देश जारी कर सकता है। अब जरूरत है कि सुप्रीम कोर्ट और
राष्ट्रपति मिलकर अनुच्छेद 60 की ताकत का व्याख्यान हम भारत के लोगों के समक्ष
रखें, शायद तभी इस बारे में व्याप्त बहस का अंत लोकतंत्र के पक्ष में हो सकेगा।
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